ब्रिटेन की चुनौती, भारत के लिए मौका

February 2, 2020

शुक्रवार और शनिवार की दरम्यानी रात आखिरकार वह लम्हा आ ही गया जिस पर पिछले चार साल से समूची दुनिया और खासकर यूरोप की नजरें लगी हुई थीं।

आधी रात को आखिरकार ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से अलग हो गया। 28 देशों के इस समूह से ब्रिटेन साल 1973 से जुड़ा हुआ था। भावुक पलों में 47 साल पुराने रिश्तों को बाय-बाय कहने की इस घटना को ब्रेक्जिट का नाम दिया गया है। हालांकि, गुडबाय कहने में अभी भी थोड़ा वक्त है। ब्रिटेन 2020 के आखिर तक यूरोपीय यूनियन की आर्थिक व्यवस्था में बना रहेगा, लेकिन अब न तो वह इसका सदस्य रहेगा, न ही उसका नीतिगत मामलों में कोई दखल होगा।

अलगाव कभी आसान नहीं होता। चाहे वह व्यक्ति का व्यक्ति से हो या किसी संस्था से या फिर किसी देश से। वर्षो तक कदम से कदम मिलाकर चलने के बाद जब जुदाई की घड़ी आती है तो वह एक दर्द दे जाती है। ब्रेक्जिट पर मुहर लगाने के बाद यूरोपीय यूनियन की नामित अध्यक्ष की बातों में भी भावनाओं का सागर उमड़ता दिखा जब उन्होंने कहा कि अलगाव के दर्द में ही प्यार की गहराई का पता चलता है। साथ ही उन्होंने कहा कि ब्रिटेन से हम कभी दूर नहीं होंगे और उससे हमेशा प्यार करते रहेंगे। 

जुदाई की यही कशमकश दूसरी तरफ भी देखने को मिली। ब्रिटेन की संसद में गतिरोध के कारण ब्रेक्जिट की समय सीमा को तीन बार बढ़ाना पड़ा। ब्रिटेन में साल 2016 में पहली बार जनमत संग्रह हुआ था, जिसमें ब्रेक्जिट को मंजूरी दी गई। लेकिन जनता की मुहर लग जाने के बाद भी ब्रिटेन को आखिरी फैसला लेने में 43 महीने का वक्त लग गया। ब्रिटेन के दो प्रधानमंत्री भी इसकी भेंट चढ़ गए-पहले डेविड कैमरन गए और फिर पिछले साल कंजरवेटिव नेता टेरीजा मे को इस्तीफा देना पड़ा। आखिरकार टेरीजा की जगह कुर्सी संभालने वाले बोरिस जॉनसन ने इस समझौते को अंजाम दिया। लेकिन इसके लिए जॉनसन को भी कम पापड़ नहीं बेलने पड़े हैं।

संसद में विपक्षियों का गतिरोध दूर करने के लिए उन्हें 12 दिसम्बर को मध्यावधि चुनाव तक कराना पड़ा। चुनाव में उनकी कंजरवेटिव पार्टी को भारी बहुमत मिला जिससे न केवल जॉनसन की कुर्सी बची बल्कि ब्रेक्जिट पर आगे बढ़ने का जनादेश भी मिल गया। जॉनसन ने इसके बाद यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों के शीर्ष नेताओं से बातचीत कर इसे आखिरी खाका पहनाया। चार साल की खींचतान के बाद ईयू की संसद ने 49 के मुकाबले 621 मतों के बहुमत से ब्रेक्जिट समझौते पर मुहर लगा दी। जॉनसन अब इसे नए युग की शुरुआत बता रहे हैं।

नए युग की शुरुआत का जॉनसन का सपना सच होगा या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल दुनिया उनकी इसी सोच पर बंटी दिख रही है। इसकी वजह भी है। अभी तक के अनुमान बता रहे हैं कि जनमत संग्रह की शुरुआत से अब तक पिछले चार साल में ब्रिटेन की जीडीपी एक फीसद तक कम हो गई है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में 2016 से 2020 तक 18.9 लाख करोड़ के नुकसान का अनुमान है, जो फिलहाल 12 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। अंदेशा है कि ब्रिटेन की इकोनॉमी को हर साल 53 हजार करोड़ रु पये तक का नुकसान हो सकता है, जिसका देश के हर नागरिक पर करीब 70 हजार रुपये का बोझ पड़ेगा। मौटे तौर पर ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर महंगाई से लेकर रोजगार तक का संकट दिखाई पड़ सकता है।

तो सवाल ये उठता है कि इतना बड़ा नुकसान उठा कर कहीं ब्रिटेन ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी तो नहीं मारी है? दुनिया का बड़ा हिस्सा भले ही ऐसा सोच रहा हो, लेकिन ब्रिटेन की अपनी दलीलें हैं-1.इंग्लैंड अब स्वतंत्र होकर अपने फैसले ले सकेगा। ईयू की दखलअंदाजी से उसकी स्वायत्तता प्रभावित हो रही थी और वह कानून बनाने के अधिकार का खुलकर इस्तेमाल नहीं कर पा रहा था। 2. इंग्लैंड  को अब अपनी इमीग्रेशन नीति बनाने का हक मिलेगा। पिछले कुछ वर्षो में ईयू की इमीग्रेशन नीति के कारण ब्रिटेन में सीरिया, मध्य-पूर्वी यूरोप और यूरोपीय संघ के देशों से बड़ी तादाद में अप्रवासी अलग-अलग वजहों से ब्रिटेन में घुस आए थे। 3. यूरोपियन यूनियन को 13 बिलियन पाउंड का भारी-भरकम सदस्यता शुल्क देने के बावजूद ब्रिटेन को व्यापार और दूसरे मद से बेहद कम राशि मिल रही थी। 4. ईयू की दखलअंदाजी से ब्रिटेन में लालफीताशाही बढ़ रही थी और प्रशासनिक काम अटक रहे थे। 5. लंदन को दुनिया की वित्तीय राजधानी का दर्जा हासिल है और ब्रिटेन को लगता है कि वह खुद के दम पर फाइनेंशियल सुपर पॉवर बन सकता है।

ब्रेक्जिट से ईयू की अर्थव्यवस्था को 1.50 लाख करोड़ का नुकसान होगा और उसकी इकोनॉमी चार फीसद तक सिकुड़ जाएगी। अलगाव की इस घटना में बेशक ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ही मुख्य किरदार हों, लेकिन कम-ज्यादा मात्रा में इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ने वाला है। भारत के लिहाज से देखें तो इसके नतीजे फिलहाल तो मिले-जुले दिख रहे हैं। भारत और ब्रिटेन का द्विपक्षीय व्यापार 25 अरब डॉलर का है। भारत ब्रिटेन को 12 अरब डॉलर का निर्यात करता है और वहां से 13 अरब डॉलर का आयात करता है। दोनों देशों के बीच सालाना 17 फीसद की दर से आपसी व्यापार बढ़ रहा है।

पिछले कुछ साल में ब्रिटेन में निवेश करने वाली भारतीय कंपनियों की संख्या बढ़कर 800 तक पहुंच गई है। 1. ब्रिटेन के रास्ते भारतीय कंपनियों की यूरोप के बाकी 27 देशों के बाजार तक सीधी पहुंच हो जाती थी। 2. ब्रेक्जिट के बाद भारतीय कंपनियों को यूरोपीय बाजार तक पहुँचने के नए रास्ते निकालने होंगे। ब्रिटेन में बने उत्पादों पर भारतीय कंपनियों को यूरोपीय देशों में टैक्स भी देना होगा। इस कारण भी कंपनियों का खर्च बढ़ेगा। 3. दुनिया भर की करंसियों में उतार-चढ़ाव का असर आईटी कंपनियों पर दिखेगा। एचसीएल टेक, टीएसएस, विप्रो, महिंद्रा, इंफोसिस जैसी कंपनियों को नए सिरे से अपनी रणनीति बनानी होगी। 4. सबसे बुरी खबर ऑटो सेक्टर से आ सकती है। मंदी की मार झेल रहा ये सेक्टर ब्रेक्जिट के बाद सबसे ज्यादा दबाव में रहने वाला है। अंदेशा है कि व्यापार की शतरे अब कड़ी होगी जो टाटा की जेएलआर, भारत फोर्ज, मदरसन सुमी जैसी कंपनियों की ग्रोथ स्टोरी को प्रभावित कर सकती है। 5. मॉरीशस और सिंगापुर के बाद ब्रिटेन भारत में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है। अगर ब्रेक्जिट से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था कमजोर हुई तो भारत में उसके निवेश में भी कमी आ सकती है। 6. पाउंड के कमजोर होने से डॉलर मजबूत बनेगा। ऐसी परिस्थिति में रु पया डॉलर के मुकाबले कमजोर हो सकता है। इसका सीधा असर कच्चे तेल और विदेश से खरीदे जानेवाले सोने और इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर भी पड़ेगा।

वैसे सब कुछ बुरा ही नहीं होने जा रहा है। ब्रेक्जिट से भारत को फायदे का भी अनुमान है-1 ब्रेक्जिट के कारण ब्रिटेन और ईयू दोनों को एक-दूसरे के विकल्पों की जरूरत होगी और भारत ये जरूरत पूरी कर सकता है। तकनीक, साइबर सुरक्षा, रक्षा और निवेश के क्षेत्र में भारत की भूमिका अहम हो सकती है। 2. भारत सरकार ने पिछले महीने ही ब्रिटेन और यूरोपीय संघ से अलग-अलग मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता करने का संकेत दिया है। 4. ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन ईयू के जटिल नियामक ढांचे से बाहर निकल आएगा। ऐसे में भारतीय कंपनियां ब्रिटेन में एक डिरेगुलेटेड और फ्री मार्केट की उम्मीद कर सकती हैं। 4. ब्रिटेन को व्यापार के लिए बड़ी तादाद में कुशल श्रम की आवश्यकता होगी और अंग्रेजी बोलने वाली जनसंख्या के साथ भारत के लिए यह फायदेमंद होगा।

जाहिर तौर पर ब्रेक्जिट ऐसा कदम है, जिससे ब्रिटेन की ही तरह भारत में भी कहीं खुशी, तो कहीं गम हैं। ब्रिटेन के लिए अनिश्चितताओं की रात भले ही लंबी दिख रही हो, लेकिन भारत के लिए राहत की बात यह है कि आने वाले दिनों में यह चुनौती हमारे लिए नया मौका भी साबित हो सकती है।


उपेन्द्र राय
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ

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