लंबी साझेदारी की तरफ नया कदम

February 22, 2020

अमेरिकी राष्ट्रपतियों के भारत दौरे हमेशा से दिलचस्पी और कौतूहल के विषय रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप का भारत दौरा भी इससे अलग नहीं है। दौरा शुरू होने में अब चंद घंटे बचे हैं और कयासों का दौर पूरी रवानी पर है। खुद ट्रंप भी इस दौरे को लेकर खासे उत्साहित दिख रहे हैं।

एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस दौरे पर किसी बड़ी ट्रेड डील से इनकार चुके हैं, तो दूसरी तरफ 70 लाख लोगों की मेजबानी के मौके का बेसब्री से इंतजार भी कर रहे हैं। अनुमान है कि जब ट्रंप 24 फरवरी को अहमदाबाद पहुंचेंगे, तो एयरपोर्ट से साबरमती आश्रम के बीच के रास्ते में और मोटेरा स्टेडियम में होने वाले ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम में इतने लोग ट्रंप के स्वागत में मौजूद रहेंगे। लाखों की संख्या का दावा भले ही संदिग्ध हो, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या ट्रंप केवल ‘70 लाख लोगों का जलसा’ देखने के लिए ही भारत आ रहे हैं इस तथ्य के बावजूद कि वह खुद फिलहाल किसी बड़े व्यापारिक समझौते की संभावना को खारिज कर चुके हैं।

तो क्या ट्रंप के इस दौरे को देखने का कोई और नजरिया भी हो सकता है? ये पहली दफा नहीं है, जब ट्रंप ने भारत को लेकर इस तरह की बयानबाजी की हो। अमेरिकी व्यापार को लेकर ट्रंप हमेशा से आक्रामक रहे हैं और इस मामले में वह भारत और चीन दोनों को एक ही तराजू में तौलते रहे हैं। गत साल उन्होंने भारत को इस आधार पर ही ‘टैरिफ किंग’ बता दिया था कि हम अमेरिका से आए सामानों पर बहुत ज्यादा टैरिफ लगाते हैं। ट्रंप के बयानों में भारत के साथ अमेरिका के व्यापार घाटे को लेकर निंदा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत प्रशंसा पर भी गौर करना जरूरी है। एक में अमेरिका फस्र्ट की नीति है तो दूसरे में ट्रंप फस्र्ट नजर आते हैं। चूंकि अमेरिका में चुनाव है और ट्रंप को भारतीय समुदाय के वोट चाहिए, इसलिए वे भारतीयों को नाराज करना नहीं चाहते। मोदी अगर उन्हें पसंद आ रहे हैं तो इसकी वजह अमेरिका में मौजूद भारतीय मूल के 44 लाख से ज्यादा लोग भी हैं। व्यापार में घाटे की अमेरिकी शिकायतों के उलट एक सच्चाई यह है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार 10 फीसद की रफ्तार से बढ़ रहा है। लेकिन दूसरा पहलू यह है कि अमेरिका का व्यापार घाटा भी बढ़कर 1,690 करोड़ डॉलर तक पहुंच चुका है।

जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस
इसलिए जहां एक तरफ अमेरिका में चुनावी माहौल के बीच ट्रंप की चिंता लाजिमी दिखती है, वहीं ट्रेड डील पर भारतीय पक्ष ट्रंप की बयानबाजी को लेकर ज्यादा फिक्रमंद नहीं दिखता। दरअसल, इस वक्त हमारी ज्यादा बड़ी चिंता जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस यानी जीएसपी स्टेटस से जुड़ी है। भारत पिछले साल मई से ही अमेरिका की इस लिस्ट से बाहर चल रहा है। इस लिस्ट में विकासशील देश शामिल होते हैं, जिन्हें अमेरिका में सामान भेजने पर टैरिफ ड्यूटी में भारी-भरकम रियायत मिलती है। इस लिस्ट से बाहर हो जाने के कारण भारत को अमेरिकी निर्यात पर करीब 190 मिलियन डॉलर की ये छूट अब नहीं मिल पा रही है। इतना ही नहीं, ट्रंप के दौरे से ठीक पहले भारत को ‘विकासशील देशों की सूची’ से हटाकर ‘विकसित देशों की सूची’ में डाल दिया गया। यह अमेरिकी राष्ट्रपति की उस सोच के अनुरूप कदम है, जिसमें उन्होंने 26 जुलाई 2019 को एक ट्वीट के जरिए कहा था कि वि व्यापार संगठन बिखर चुका है, जिसमें दुनिया के अमीर देशों ने विकासशील देशों को डब्ल्यूटीओ के नियमों को तोड़ने की छूट दे रखी थी और ऐसे देशों को विशेष दर्जा दे रखा था। लेकिन इसे आगे चलाना मुमकिन नहीं है। ट्रंप के इस दौरे पर भारत पहले से मिल रही सुविधाओं को दोबारा बहाल करवाने पर जोर दे सकता है। इसके अलावा, भारत स्टील और एल्यूमीनियम उत्पादों पर अमेरिका के लगाए गए भारी टैक्स में राहत के साथ-साथ ऑटोमोबाइल, ऑटो और इंजीनियरिंग उत्पादों के लिए भी नए बाजार की तलाश में है।

वैसे इस दौरे से भारत को कच्चे तेल के क्षेत्र में अच्छी खबर मिल सकती है। भारत को अमेरिकी तेल कंपनियों से पांच डॉलर प्रति बैरल की छूट का प्रस्ताव मिल सकता है। हालांकि इसके लिए अमेरिका ज्यादा तेल खरीदने की शर्त रख सकता है। भारत में परंपरागत रूप से कच्चे तेल की ज्यादातर सप्लाई खाड़ी देशों से होती रही है। इस साल अमेरिका से क्रू़ड ऑयल आयात 1 करोड़ टन रहने की उम्मीद है। नया करार होने से अगले साल यह आयात दोगुना हो सकता है, जो कच्चे तेल की हमारी 10 फीसद जरूरत को पूरा कर सकता है। इससे अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद से ईरान से कम हुए कच्चे तेल आयात की काफी हद तक भरपाई हो सकेगी और भारतीय कंपनियों को पेट्रोलियम उत्पादों के दाम नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी।

हिंद महासागर और भारत
रणनीतिक मोर्चे पर ट्रंप के इस भारत दौरे में चीन के मद्देनजर दो बड़े रक्षा समझौतों पर मुहर लगेगी। नेवी के लिए 24 एमएच-60 ‘रोमियो’ सीहॉक मैरीटाइम मल्टी-मिशन हेलिकॉप्टर और सेना के लिए छह एएच-64 ई अपाचे अटैक हेलिकॉप्टरों का 25,000 करोड़ रु पये का सौदा होना है। यह रक्षा डील एक ओर अमेरिका के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद है, तो दूसरी ओर इससे हिंद महासागर में भारत के रणनीतिक हित जुड़े हुए हैं। चीन को हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में रोकने के लिए ही अमेरिका और भारत ने ऑस्ट्रेलिया और वियतनाम से हाथ मिलाया है।

सोचिए, इतना सब कुछ तब हो रहा है, जब प्रधानमंत्री मोदी के साथ सातवीं मुलाकात में ट्रंप ये बयान दे रहे हैं कि इस दौरे पर कुछ बड़ा नहीं हो रहा है। असलियत यह है कि इसी बयान में ट्रंप ने एक बड़ा इशारा भी किया है। कयास इस बात के हैं कि भारत के साथ बड़ी डील उन्होंने भविष्य के लिए बचा कर रखी है, जो नवम्बर में होने जा रहे राष्ट्रपति पद के चुनाव से पहले भी हो सकता है और नतीजे आने के बाद भी। अपनी जीत को लेकर इतने आत्मविश्वास में दिख रहे ट्रंप शायद ऐसी ही किसी बड़ी डील का इशारा कर रहे हैं?

दरअसल, भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए को लेकर बातचीत हो रही है। साल 2014 में पीएम मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की पहली मुलाकात में इसकी बुनियाद पड़ी थी। इसका लक्ष्य द्विपक्षीय कारोबार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का है। फिलहाल, यह 140 अरब डॉलर के करीब है। माना जा रहा है कि इस समझौते से दोनों देशों के बीच कारोबारी तनाव दूर होगा और लंबी अवधि के हितों का ध्यान रखना संभव होगा। दौरे के दूसरे दिन हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ट्रंप के बीच जो आधिकारिक बातचीत होगी, उसमें एफटीए बड़ा मुद्दा रह सकता है। इसमें 6 साल पुराने एक्शन प्लान को जमीन पर उतारने की ठोस पहल शुरू हो सकती है।


 
वैसे भी इस पहल के लिए मौजूदा समय सबसे बेहतर मौका है। ट्रंप फिलहाल व्यापार में नया करार करने से भले ही पीछे हट गए हों, लेकिन उन्होंने एक बार फिर आगे बढ़कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपनी दोस्ती का इकरार किया है। दोनों देशों के बीच रणनीतिक, व्यापारिक और कूटनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद दोनों नेताओं की इस व्यक्तिगत केमिस्ट्री में कोई बदलाव नहीं आया है। ‘हाउडी मोदी’ से लेकर ‘नमस्ते ट्रंप’ के बीच इस रिश्ते ने आपसी गर्मजोशी की नई ऊंचाइयों को छुआ है। दोनों नेताओं की अपने-अपने देश में स्वीकार्यता भी शिखर पर है। महाभियोग से बेदाग निकलने के बाद अमेरिका में ट्रंप की अप्रूवल रेटिंग 49 प्वाइंट्स तक पहुंच चुकी है, जबकि भारत में पीएम मोदी की लोकप्रियता दूसरे कार्यकाल में भी बरकरार है। बेशक दो देशों के बीच के करार को उनके दो शीर्ष नेताओं के आपसी संबंधों से परिभाषित नहीं किया जा सकता, लेकिन नेताओं की पहल से करार के लिए मुफीद माहौल तैयार होने की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता।  भारत और अमेरिका के रिश्तों को लेकर बराक ओबामा ने एक बार कहा था कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र 21वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण साझेदार होंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि 24 फरवरी को मोटेरा स्टेडियम में राष्ट्रपति ट्रंप और पीएम मोदी जब एक-दूसरे का हाथ थामेंगे, तो वे दो लोकतंत्र की साझेदारी को और मजबूत बनाने की ओर नया कदम भी बढ़ाएंगे।


उपेन्द्र राय
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ

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