बजट से मजबूत होगी आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद

February 6, 2021

साल 2021-22 का बजट पेश हो चुका है और अब इसे अलग-अलग कसौटी पर कसा जा रहा है। सियासी जमात इसमें अपनी गुंजाइश और बाजार अपना भविष्य तलाश रही है। चूंकि यह बजट बिल्कुल अलग तरह की चुनौतियों के बीच पेश हुआ है, इसलिए इसका फोकस और लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट दिखता है, और इसमें भ्रम की कोई स्थिति नहीं दिखती।

बजट में कोरोना काल में देश के स्वास्थ्य और आर्थिक सेहत को हुए नुकसान की भरपाई और आगे बढ़ने के रोडमैप को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है, और अधिकतर प्रावधान इसी लक्ष्य की पूर्ति के प्रारंभिक प्रयास हैं। चाहे बजट का आकार हो या प्रावधानों के प्रकार, दोनों का फोकस इसी बात पर है कि अर्थव्यवस्था को रफ्तार कैसे दी जाए?

आकार के लिहाज से देखें, तो कोरोना की असाधारण परिस्थितियों के बीच भी 34.83 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश करना कोई साधारण काम नहीं है। वैसे तो यह आंकड़ा ही अपने-आप में काफी बड़ा है, लेकिन यह भी पूरा नहीं है। कोरोना काल में आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था को संबल देने के लिए सरकार ने लगभग 20 लाख करोड़ रुपये के तीन अलग-अलग बूस्टर डोज भी जारी किए थे। इन सबको जमा किया जाए, तो यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि मुश्किल वक्त में अपना खजाना खोलने में सरकार ने कोई कंजूसी  नहीं की है।

आमूल-चूल बदलाव
उम्मीद के मुताबिक, बजट में सबसे ज्यादा तवज्जो हेल्थ सेक्टर को ही मिली है। पिछले आवंटन के लिहाज से देखें, तो यह तवज्जो उम्मीदों से भी परे है। इस बार स्वास्थ्य के लिए दो लाख 23 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का बजटीय प्रावधान किया गया है, जो पिछली बार की तुलना में 137 फीसद ज्यादा है। इसमें कोरोना से तात्कालिक लड़ाई के लिए 35 हजार करोड़ रु पये का प्रावधान तो किया ही गया है, लेकिन जो कदम ज्यादा दूरगामी दिखता है, वो है प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वास्थ्य योजना की शुरु आत जिसके लिए 64,180 करोड़ रु पये अलग से रखे गए हैं। योजना के तहत 70 हजार गांवों में वेलनेस सेंटर, 602 जिलों में क्रिटिकल केयर अस्पताल, 15 हेल्थ इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर, नौ बायो सेफ्टी लेवल लैब, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को कनेक्ट करने के लिए इंटीग्रेटेड हेल्थ इन्फॉर्मेशन पोर्टल शुरू करने के साथ ही राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र को मजबूत बनाया जाएगा। जाहिर तौर पर इसके पीछे सोच कोरोना से मिले सबक और किसी अगली महामारी के लिए पहले से मुकम्मल तैयारी की दिखती है। गांव से लेकर शहर तक स्वास्थ्य ढांचे में आमूल-चूल बदलाव की यह योजना अगर साकार हो जाती है, तो यह बीमारियों की रोकथाम, चिकित्सा और आम जन के स्वस्थ जीवन के लिहाज से गेमचेंजर साबित हो सकती है।   
 

न्यू इंडिया के नजरिए से इस बजट में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी दूरदर्शिता की नई लकीर खींचने की कोशिश दिखती है। आज दुनिया मैन्युफैक्चरिंग में चीन का विकल्प तलाश रही है और बजट में हुए प्रावधानों से भरोसा मिलता है कि सरकार इस अवसर को भुनाने की रणनीति पर काफी आगे बढ़ चुकी है। घरेलू उत्पादन को बढ़ाने और आयात बिल को कम करने के लिए सरकार ने पिछले साल 13 बड़े सेगमेंट को कवर करते हुए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना शुरू की थी। बजट में इस बार पीएलआई में नई तकनीक लाने और अगले पांच साल में 1.97 लाख करोड़ रु पये खर्च करने का इरादा जताया गया है। बड़े पैमाने पर रोजगार की गारंटी देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर को भी अगले तीन साल में निवेश के सात बड़े केंद्र देने की योजना है।

मेक इन इंडिया को बढ़ावा
बजट के प्रावधानों से ये संकेत मिलते हैं कि सरकार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए दोहरी रणनीति पर काम कर रही है। इसके तहत लॉजिस्टिक की लागत को कम रखने और घरेलू माल को वैिक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है। नेशनल रेल प्लान और भारतमाला प्रोजेक्ट इसी रणनीति का हिस्सा दिखते हैं। नेशनल रेल प्लान के तहत साल 2030 तक की जरूरतों को देखते हुए कई फ्रेट कॉरिडोर बनाए जाएंगे, जबकि भारतमाला प्रोजेक्ट में मार्च, 2022 तक ग्यारह हजार किलोमीटर निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। देश में सड़कों और रेल लाइनों का जाल बिछ जाने से घरेलू उत्पाद बंदरगाहों और हवाई अड्डों तक जल्दी पहुंचेंगे और हम कम समय में उन्हें दूसरे देशों में भेज सकेंगे। वहीं, दूसरी रणनीति निवेश बढ़ाने के नये उपाय की तलाश से जुड़ी है। डवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन यानी विकास वित्तीय संस्थान के लिए अलग से विधेयक और 20 हजार करोड़ रुपये की पूंजी लगाने की घोषणा इसी तलाश का एक अहम पड़ाव साबित हो सकता है। ऐसा अनुमान है कि अगले तीन साल में इसका लोन पोर्टफोलियो पांच लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।

वोकल फॉर लोकल
एमएसएमई के बजट को दोगुना करने के पीछे भी यही महत्त्वाकांक्षा दिखती है। कृषि के बाद एमएसएमई रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा सेक्टर है, और कोरोना की सबसे ज्यादा मार भी इसी सेक्टर पर पड़ी है। सरकार इस सेक्टर को आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल योजना का मॉडल बनाना चाहती है और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निग और पेडअप कैपिटल की सीमा बढ़ाना इस सेक्टर को नई ताकत देने की मंशा दिखाता है।  

भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस बजट में शहरों में गुणवत्तापूर्ण जीवन की जरूरत को भी पर्याप्त तरजीह दी है। गांवों से शहरों की ओर बेलगाम पलायन को देखें, तो सरकार की इस पहल का दूरगामी महत्त्व समझ में आता है। बजट में स्वच्छ पेयजल, सफाई, प्लास्टिक उपयोग में कमी, पर्यावरण सुधार, कनेक्टिविटी में सुधार जैसी मदों के लिए भी अच्छा-खासा खर्च रखा गया है।

पूरे बजट में दो ऐसे मसले हैं, जिन पर थोड़ी-बहुत गुंजाइश दिखती है। पहला, कृषि जिसके बारे में अनुमान था कि किसान आंदोलन को देखते हुए सरकार अपना खजाना खोलेगी, लेकिन पिछली बार के मुकाबले इस बार केवल दो फीसद का ही इजाफा हो पाया। हालांकि यह भी सही है कि इस बार एमएसपी के लिए कमिटमेंट और मंडियों को मजबूत बनाने के साथ-साथ जोर गांव-देहात के बुनियादी ढांचे को सुधारने पर भी है, जो आने वाले समय में फायदेमंद होगा।

दूसरा मसला सरकारी संपत्तियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने को लेकर है, जो विपक्ष के साथ-साथ भारतीय मजदूर संघ जैसे आनुषंगिक संगठनों को भी रास नहीं आया है। माना जा रहा है कि यह आत्मनिर्भर भारत की सोच के खिलाफ है, लेकिन सरकार की दलील है कि बेकार संपत्तियां उल्टे आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान नहीं करतीं और इनका विनिवेश ही सरकार का राजस्व बढ़ाने के साथ-साथ इन्हें घाटे से उबार सकता है।

बहरहाल, पूरे बजट को समग्रता से देखने पर पता चलता है कि सरकार पूंजीगत व्यय के जरिए अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की कोशिश कर रही है। इसलिए इस बार बजट के कुल व्यय में पूंजीगत व्यय की हिस्सेदारी को 6.6 फीसद बढ़ाकर 4.4 लाख करोड़ रु पए तो किया ही गया है, अगले साल के लिए भी इसमें 25 फीसद तक की बढ़ोतरी की गई है। इससे अर्थव्यवस्था को कितना फायदा पहुंचेगा, यह आने वाले समय में पता चलेगा। वैसे समय पर उठाए गए कुछ कदम और नीतिगत निर्णयों से हमारी अर्थव्यवस्था की रिकवरी दूसरे कई देशों से बेहतर रही है। मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई, औद्योगिक उत्पादन, जीएसटी संग्रह जैसे प्रमुख संकेतक फिर से अपने पुराने स्तर पर आ गए हैं, या उससे आगे भी निकल गए हैं, इन्हीं सब को आधार मानकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी भारतीय अर्थव्यवस्था में 11.5 फीसद तक की ग्रोथ और इसके ग्लोबल इकोनॉमी का विकास इंजन बनने को लेकर आशान्वित दिख रहा है।


उपेन्द्र राय
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ

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