बांटो और राज करो, हे भगवान! इन्हें माफ करो

October 31, 2021

औपनिवेशिक दौर में अंग्रेजों ने दो खेल ‘खूब’ खेले। इस ‘खूब’ शब्द का उपयोग मात्रात्मक और गुणात्मक, दोनों तरह से किया जा सकता है और यह दोनों अर्थों में फिट बैठता है।

जिन दो खेलों के संदर्भ में इसका प्रयोग किया गया है, उनमें से एक तो है क्रिकेट का खेल और दूसरा है ‘बांटो और राज करो’ वाला खेल। सदियों तक ये ‘खेल’ अंग्रेजों की शासन प्रणाली के प्रमुख हथियार रहे। जिन देशों पर उन्होंने शासन किया वहां वो व्यापारी बनकर पहुंचे और फिर स्थानीय शासन तंत्र में फूट डालकर पहले तो उसे कमजोर किया और फिर उस पर कब्जा जमा लिया। जो देश गुलाम बनते गए, वहां डेरा डालने वाले अंग्रेज अधिकारियों और सेना के लिए क्रिकेट का खेल मनोरंजन का साधन बना जिसमें गेंद के पीछे दौड़ने-भागने, उसे बाउंड्री पार से उठाकर लाने और खिलाड़ियों के लिए मैदान पर पानी ले जाने जैसे ‘चाकरी’ वाले कामों के लिए स्थानीय लोगों को भी इससे जोड़ा गया। समय बीता तो धीरे-धीरे अंग्रेजों का सूरज भी डूबते-डूबते ब्रिटेन तक महदूद होकर रह गया, लेकिन कभी उनके गुलाम रहे देशों में पीछे छूट गया क्रिकेट और फूट डालो-राज करो वाली ‘विरासत’ खूब फलती-फूलती रही।

पिछले रविवार इस ‘विरासत’ का विद्रूप चेहरा दुनिया के सामने आया। मौका था भारत और पाकिस्तान के बीच हुए टी-20 वर्ल्ड कप मैच का, जिसमें पाकिस्तान ने किसी भी वर्ल्ड कप मैच में पहली बार भारत को हराया। रिकॉर्ड की किताबों में लिखे जाने के लिए यह फासला 29 साल का था, लेकिन बड़ी बात यही थी कि वर्ल्ड कप में पाकिस्तान ने भारत पर पहली जीत दर्ज की। जैसा कि अक्सर होता है, खेल के मैदान पर भी भारत-पाकिस्तान मुकाबला किसी जंग से कम नहीं होता और मैदान के अंदर-बाहर एक जैसा माहौल होता है। खिलाड़ियों का खेल और दोनों देशों के लोगों के बयान ही इस जंग के गोला-बारूद होते हैं। लेकिन इस बार बात कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गई और खेल-खेल में संयम और समझदारी की लक्ष्मण रेखा को भी पार कर गई।

इसकी शुरु आत हुई पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख रशीद के बयान से जिन्होंने भारत पर पाकिस्तान की जीत को इस्लाम की जीत करार दे दिया। इधर मैच खत्म हुआ, उधर ट्विटर पर शेख रशीद की ‘चिड़िया’ चहकी कि दुनिया के मुसलमान समेत हिंदुस्तान के मुसलमानों के जज्बात पाकिस्तान के साथ हैं, इस्लाम की फतह मुबारक हो, पाकिस्तान जिंदाबाद। यकीनन उस दिन खेल के मैदान में पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने अपने देश को जिंदाबाद करने वाला काम किया था, लेकिन इसका इस्लाम से क्या लेना-देना? इस घटनाक्रम पर पाकिस्तान की राजनीतिक जमात से एक और बयान निकल कर आया जो लगभग इतना ही आपत्तिजनक था लेकिन चर्चा का विषय नहीं बन पाया। इसके लिए पाकिस्तान के एक और मंत्री असद उमर ने भी ट्विटर को ही अपनी बेहूदी सोच का मंच बनाया और लिखा कि पहले हम उनको (भारत को) हराते हैं और जब वे (भारतीय) जमीन पर गिर जाते हैं तो चाय देते हैं। उमर की ‘नजरें’ तो विंग कमांडर अभिनंदन पर थी, लेकिन ‘निशाना’ यकीनन भारत की हार पर था।

केवल सियासतदां ही नहीं, इस गरमागरमी में भारत से लगातार हार झेले बैठे कुछ पुराने पाकिस्तानी खिलाड़ियों की टीस भी बाहर निकल आई। वकास यूनुस का ‘हिंदुओं के सामने रिजवान का नमाज पढ़ने का लम्हा बेहद खास था’-वाला बयान भी शेख रशीद की ही तरह धार्मिंक उकसावे से किसी तरह कम नहीं है, हालांकि इसके लिए माफी मांगकर उन्होंने तुरंत ही अपनी गलती भी सुधार ली।

ऐसा नहीं है कि क्रिकेट के नाम पर यह भद्दापन केवल पाकिस्तान के कुछ सिरफिरे लोगों का ही कॉपीराइट है। सरहद के इस पार भारत में ट्विटर पर मोहम्मद शमी के लिए ‘गद्दार’ ट्रेंड करवाने और उसमें शामिल होने वाले भी उसी मानसिकता के गुलाम हैं।

दरअसल, यही वो भाव है जो अंग्रेजों की छोड़ी हुई ‘विरासत’ के लिए खाद-पानी का काम कर रहा है। खेल को हथियार बनाकर फूट डालो और राज करो। दुनिया भर के शासक वर्ग वास्तविक राजनीतिक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए खेलों का इस्तेमाल करते हैं। पाकिस्तान में क्रिकेट इस उद्देश्य को पूरा करता है। वहां जब भी क्रिकेट का कोई बड़ा मुकाबला होता है तो लोग कुशासन और आसमान छू रही महंगाई को भूल कर राष्ट्रवाद की शरण लेते हैं। फिर इस समय तो पाकिस्तान अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। महंगाई और मुद्रा अवमूल्यन से लेकर कश्मीर, चीन और तालिबान के मसलों पर दुनिया भर से मिल रही लताड़ के बीच प्रधानमंत्री इमरान खान की लोकप्रियता रसातल में पहुंच चुकी है और उन पर पद गंवाने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में क्रिकेट उनके लिए राजनीतिक कवच का काम कर सकता है।

यह पाकिस्तान की पुरानी परंपरा भी रही है। जब सत्ता में बैठे लोग अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने में नाकाम रहते हैं, तो इस्लाम उनके लिए अंतिम उपाय बन जाता है और क्रिकेट भी इससे बच नहीं पाया है। इसका सबसे बड़ा नमूना खुद इमरान खान हैं। ब्रिटेन में शिक्षित इमरान ने अपने क्रिकेट के दिनों में ‘सप्रयास’ प्लेबॉय की छवि गढ़ी लेकिन राजनीति में आते ही रूढ़िवाद का चोला ओढ़ लिया। आजकल उनकी मान्यता यह है कि पश्चिमी संस्कृति युवा पाकिस्तानियों को भ्रष्ट कर रही है।

इस मनोवृत्ति की एक और वजह यह है कि पिछले दो दशकों में कई पाकिस्तानी क्रिकेटर तबलीगी जमात में भी शामिल हुए हैं। तबलीगी जमात एक मिशनरी समूह है जिसके लाखों अनुयायी हैं। पाकिस्तानी क्रिकेटर प्रेस कॉन्फ्रेंस में धार्मिंक शब्दावली का खुल कर इस्तेमाल करते हैं, और कुछ तो मैदान पर ही खेल के दौरान नमाज और जीत के बाद सजदा भी करते हैं। एक अन्य वजह यह गिनाई जाती है कि राजनेता और क्रिकेटर भी समाज का हिस्सा होते हैं और पाकिस्तानी समाज पर इस्लाम का एकाधिकार है। नेता और खिलाड़ी ही क्यों, वहां तो फिल्म स्टार्स और दूसरी हस्तियां भी इससे नहीं बच पाई हैं।

यह पहला मौका नहीं है-और यकीनन आखिरी भी नहीं-जब पाकिस्तान की ओर से मानवता को बांटने का खतरा पैदा करने वाले बयान आए हों। 14 साल पहले टी-20 वर्ल्ड कप में जब पाकिस्तान खिताबी मुकाबले में भारत से हारा था, तो तब के कप्तान शोएब मलिक ने हार के बाद पाकिस्तान और दुनिया भर के मुसलमानों को जबरिया इस ‘जंग’ से जोड़ते हुए उनके समर्थन पर शुक्रिया और हार के लिए माफी मांगी थी। दिलचस्प बात यह थी कि उस मैच में शोएब का विकेट भी इरफान पठान ने लिया था और फाइनल के मैन ऑफ द मैच भी इरफान ही बने थे। एक दूसरा संयोग यह भी है कि पाकिस्तान के खिलाफ विश्व कप मैच में भारत को तीन जीत मोहम्मद अजहरु द्दीन की कप्तानी में मिली हैं।

क्रिकेट के मैदान पर पाकिस्तान को बांग्लादेश से भी हार मिली है। इस्लाम से मुकाबले में इस्लाम की हार पर शेख रशीद जैसे लोग क्या कहेंगे, पता नहीं। बेहतर होता खेल को हथियार बनाकर अपनी नकारात्मक राजनीति को चमकाने का ‘खेल’ खेलने के बजाय शेख रशीद अपने पड़ोस के ही इस्लामिक मुल्क अफगानिस्तान से प्रेरणा ले लेते, जहां क्रिकेट बांटने का नहीं, बल्कि तालिबान के खिलाफ ‘एकजुट’ प्रतिरोध का प्रतीक बना है। अगर शेख रशीद ने इस जीत को इस्लाम की जीत बताने की जगह अच्छे खेल की जीत कहा होता तो उन्हें इतनी लानत-मलामत नहीं झेलनी पड़ती, बल्कि भारत समेत हर धर्म को मानने और क्रिकेट को समझने वाले दुनिया-जहां के लोग उनके साथ, उनके समर्थन में खड़े होते।


उपेन्द्र राय
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ

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