यूरोप पर वार, भारत कितना तैयार?

November 14, 2021

कोरोना के खिलाफ जंग में मोदी सरकार दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान चला रही है।

जितना बड़ा इस अभियान का दायरा है, उतने ही प्रभावी इसके परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं और इस बात के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दुनिया के किसी भी दूसरे वैश्विक नेता से ज्यादा सराहना भी की जा रही है। फिलहाल वैक्सीनेशन का आंकड़ा 115 करोड़ के करीब पहुंच रहा है और सरकार इस महीने के आखिर तक देश की आबादी के 90 फीसद हिस्से को इसके दायरे में लाना चाहती है। इसके लिए सरकार इन दिनों कई राज्यों में घर-घर दस्तक अभियान चला रही है, जिसमें सरकारी अमला उन लोगों के घर पहुंच रहा है जो किन्हीं वजहों से टीका नहीं लगवा पाए हैं।

जमीनी स्तर पर चल रहा यह प्रयास किसी उपलब्धि से कम नहीं है। सरकार देश की हो या राज्य की, वह जनता के सामने इन प्रयासों को पेश भी उसी अंदाज में करती है, लेकिन ऊपरी तौर पर राहत का सबब दिख रहे ये इंतजाम क्या वाकई इस बात की गारंटी देते हैं कि हमने कोरोना से जंग जीत ली है? अगर जंग जीती नहीं है तो क्या उसे काबू में कर लिया है? क्या इससे हमें लापरवाह हो जाने की आजादी मिल गई है? फिर इतनी बड़ी तादाद में वैक्सीनेशन पर अपनी पीठ थपथपाने के साथ ही सरकार बार-बार हमें कोरोना से सावधान रहने की ताकीद क्यों देती रहती है? 100 करोड़ से ज्यादा वैक्सीनेशन का आंकड़ा छोटा-मोटा नहीं होता। फिर क्यों सरकार इसे 100 फीसद तक ले जाने के लिए इतनी संकल्पित दिख रही है? दरअसल, इसकी कई वजहों में से एक बड़ी वजह है यूरोप से आ रहे संकेत। कोरोना को लगभग ‘खदेड़’ चुके यूरोप के कई देश फिर से महामारी के केंद्र बन गए हैं। समूचे यूरोप में इस समय रोजाना कोरोना संक्रमण के ढाई लाख से ज्यादा नये मामले सामने आ रहे हैं। यूरोप की सबसे बड़ी आबादी वाले देश जर्मनी में इस गुरुवार को यह आंकड़ा 50 हजार को पार कर गया। ब्रिटेन में भी हर रोज 30 हजार से ज्यादा नये मामले दर्ज हो रहे हैं। पिछले एक हफ्ते में जर्मनी में 950 और ब्रिटेन में 1200 के करीब कोरोना मरीज दम तोड़ चुके हैं। हॉलैंड हो या पोलैंड सब का एक जैसा हाल है। बेल्जियम कोरोना की चौथी और फ्रांस पांचवीं लहर का सामना कर रहा है। नौबत यहां तक आ गई है कि कई देशों ने क्रिसमस से जुड़े बाजारों, सिनेमाघरों, कैफे-रेस्त्रां और विभिन्न आयोजनों पर प्रतिबंध लगाने भी शुरू कर दिए हैं। सार्वजनिक स्थानों पर फेस मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग फिर अनिवार्य हो गए हैं और वर्क फ्रॉम होम की भी वापसी हो गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी कर दी है कि अगर हालात संभाले नहीं गए तो इस बार पूरे यूरोप में मौत का आंकड़ा पांच लाख के पार जा सकता है।

यूरोप में चल रहे इस घटनाक्रम से हम क्या सबक ले सकते हैं? इस समूचे प्रकरण से जुड़ी एक अहम जानकारी इस मामले में शायद हमारी बड़ी मदद कर सकती है। जिन देशों का मैंने ऊपर जिक्र किया है, वे ऐसे देश हैं, जो अपनी आबादी के करीब दो-तिहाई हिस्से को वैक्सीनेट कर चुके है। ब्रिटेन तो अपनी 90 फीसद आबादी को पहला और 70 फीसद आबादी को दूसरा डोज लगा चुका है। इतना ही नहीं, वहां 20 फीसद लोगों को तो बूस्टर डोज भी लगाया जा चुका है। इसके बावजूद अगर इन देशों में कोरोना रोके नहीं रुक रहा है, तो इसका मतलब तो यही है कि वैक्सीनेशन संक्रमण के खिलाफ एक हथियार जरूर है, लेकिन अगर हम इसे कोई रामबाण इलाज मान रहे हैं, तो हम बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। हम दरअसल क्या कर रहे हैं? वही सब जिसकी कीमत आज यूरोप चुका रहा है। सार्वजनिक जगहों पर मास्क हैं, लेकिन सब लोग नहीं लगाते। सोशल डिस्टेंसिंग का हाल यह है कि बाजार भरे पड़े हैं, त्योहारों में जमकर खरीदारी हुई है, टूरिस्ट स्पॉट पर सैलानियों का रैला है और अब चुनावी रैलियों का मौसम भी बनने लगा है। यह सब इसी भरोसे पर तो रहा है कि 100 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लग गई है, लेकिन हम यह भूल रहे हैं कि इनमें से केवल 36 करोड़ लोग यानी टीके लगवाने के लिए योग्य आबादी का केवल 30 फीसद हिस्सा पूरी तरह वैक्सीनेट हुआ है। पहला टीका लगवा चुके लोगों में से करीब 12 करोड़ लोग तो ऐसे हैं, जो तय तारीख निकल जाने के बाद भी दूसरा टीका लगाने नहीं पहुंचे हैं।

इस सबके बीच हमने अपने बच्चों के लिए स्कूल-कॉलेज भी खोल दिए हैं। मेरे बच्चे भी स्कूल जा रहे हैं, आपके भी जा ही रहे होंगे। वयस्कों ने तो फिर भी टीके लगवा लिये हैं, लेकिन बच्चों के लिए हम क्या सोच रहे हैं? उन्हें टीके कैसे लगेंगे, कब लगेंगे इस पर ज्यादा मालूमात अब तक नहीं हैं। केवल तारीख पर तारीख ही सुनने को मिल रही है। एक और बड़ी चुनौती है जिस पर हमारे देश में ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है। जनवरी में जब हमने गाजे-बाजे के साथ दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया तो पहली वरीयता कोरोना काल में अपनी जान पर खेलने वाले स्वास्थ्यकर्मिंयों और पुलिसकर्मिंयों को दी। उन्हें कोरोना वॉरियर्स का नाम दिया, पहले-पहल टीके लगाने का सम्मान भी दिया। यह वाजिब भी था। दूसरे डोज के अंतराल को भी जोड़ लिया जाए तो अब इन कोरोना वॉरियर्स को मिले टीके का कवच 6 से 8 महीने पुराना पड़ चुका है यानी यह भी संभव है कि अगर अब कोरोना से सामना हो तो वो कवच बेअसर साबित हो। उनकी सुरक्षा के लिए हम क्या कर रहे हैं? क्या उनके लिए किसी बूस्टर डोज की बात चल रही है? क्योंकि अस्पताल, आईसीयू, बेड, ऑक्सीजन, दवाई सबके इंतजाम तो किए जा सकते हैं, रातों-रात नये डॉक्टर-नर्स नहीं लाए जा सकते? तीन महीने पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा था कि भारत में कोरोना महामारी एंडेमिक फेज में प्रवेश कर सकती है। ये वह अवस्था होती है, जिसमें संक्रमण कभी खत्म नहीं होता लेकिन उतना घातक भी नहीं रहता और हमें उसके साथ ही जीना पड़ता है। जैसे स्वाइन फ्लू, जो अब उतना खतरनाक नहीं समझा जाता जितना 10 साल पहले हुआ करता था। वैसे भी महामारियां एक बार आ जाएं, तो कभी खत्म नहीं होतीं। केवल चेचक ही इसका अपवाद है, वरना खसरा, कुष्ठ रोग, टीबी, प्लेग या हाल के वर्षो में सामने आए इबोला वायरस, मार्स, सार्स जैसी महामारियां स्थानीय बीमारियों के रूप में दुनिया के किसी-न-किसी हिस्से में मौजूद रहती हैं, लेकिन कोरोना तो अभी भी न सिर्फ  अपना रूप बदल रहा है बल्कि रूप बदल-बदल कर खुद को दुनिया के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है। इसलिए हमें भी यह समझना होगा कि हमारे सिर से खतरा टला नहीं है।

पिछले कुछ दिनों से देश में जिस तरह कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए भी अगर हम जल्द नहीं संभले, तो मार्च-अप्रैल वाले हालात दोबारा लौट भी सकते हैं। देश में रोजाना के नये मामलों की संख्या 10 हजार को पार कर चुकी है और लगातार बढ़ रही है। केरल के साथ ही महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में हालात फिर बिगड़ रहे हैं। मौत का आंकड़ा भी रोजाना करीब 500 के आसपास रह रहा है। ऐसे में समझदारी इसी बात में है कि हम भी सतर्कता बरतें, आगे आकर टीका लगवाएं, टीके लगवा लिये हैं तो कोरोना प्रोटोकॉल का पूरी ईमानदारी से पालन करें। यह मानकर चलें कि परिस्थितियां अभी भी सामान्य नहीं हैं, इसलिए जीवन में कुछ असामान्य भी करना पड़े तो इस बदलाव को सहजता के साथ स्वीकार करें क्योंकि जब हममें से हर एक इसे जिम्मेदारी समझेगा तभी हम सबका जीवन भी सामान्य हो सकेगा।


उपेन्द्र राय
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ

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