शिव कौन हैं

February 21, 2020

शिव कौन हैं? क्या वे भगवान हैं? या बस एक पौराणिक कथा? या फिर शिव का कोई गहरा अर्थ है, जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो खोज रहे हैं?

भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति के सबसे अहम देव, महादेव शिव, के बारे में कई गाथाएं और दंतकथाएं सुनने को मिलती हैं। क्या वे भगवान हैं या केवल हिन्दू संस्कृति की कल्पना हैं? या फिर शिव का एक गहरा अर्थ है, जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो सत्य की खोज में हैं? जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो हमारा इशारा दो बुनियादी चीजों की तरफ होता है। ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो नहीं है’। आज के आधुनिक विज्ञान ने साबित किया है कि इस सृष्टि में सब कुछ शून्यता से आता है और वापस शून्य में ही चला जाता है।

इस अस्तित्व का आधार और संपूर्ण ब्रह्मांड का मौलिक गुण ही एक विराट शून्यता है। उसमें मौजूद आकाशगंगाएं केवल छोटी-मोटी गतिविधियां हैं, जो किसी फुहार की तरह हैं। उसके अलावा सब एक खालीपन है, जिसे शिव के नाम से जाना जाता है। शिव ही वह गर्भ हैं जिसमें से सब कुछ जन्म लेता है, और वे ही वह गुमनामी हैं, जिनमें सब कुछ फिर से समा जाता है। सब कुछ शिव से आता है, और फिर से शिव में चला जाता है।

तो शिव को ‘अस्तित्वहीन’ बताया जाता है, एक अस्तित्व की तरह नहीं। उन्हें प्रकाश नहीं, अंधेरे की तरह बताया जाता है। मानवता हमेशा प्रकाश के गुण गाती है, क्योंकि उनकी आंखें सिर्फ  प्रकाश में काम करती हैं वरना, सिर्फ  एक चीज जो हमेशा है, वह अंधेरा है। प्रकाश का अस्तित्व सीमित है, क्योंकि प्रकाश का कोई भी सोत, चाहे वह एक बल्ब हो या फिर सूर्य, आखिरकार प्रकाश बिखेरना करना बंद कर देगा। प्रकाश शात नहीं है। ये हमेशा एक सीमित संभावना है, क्योंकि इसकी शुरु आत होती है और अंत भी। अंधकार प्रकाश से काफी बड़ी संभावना है।

अंधकार में किसी चीज के जलने की जरूरत नहीं, अंधकार शात है। अंधकार सब जगह है। वह एक अकेली ऐसी चीज है जो हर जगह व्याप्त है। पर अगर मैं कहूं ‘दिव्य अंधकार’ लोग सोचते हैं कि मैं शैतान का उपासक हूं। सच में, पश्चिम में कुछ जगहों पर ये फैलाया जा रहा है कि शिव राक्षस हैं! पर आप अगर इसे एक सिद्धांत के रूप में देखें तो पूरे विश्व में सृष्टि की प्रक्रिया के बारे में इससे ज्यादा स्पष्ट सिद्धांत नहीं मिलेगा।




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