लम्हों ने खता की

February 28, 2020

ये देश बहुत जल्दबाजी में बनाया गया, यानी हमने बस नक्शे पर लकीरें खींच दीं, अलग-अलग भौगोलिक विशेषताओं को ध्यान में रखे बिना।

जब आप भौगोलिक विशेषताओं को ध्यान में रखे बिना लकीरें खींचते हैं, तो उन लकीरों की सुरक्षा करना बहुत ही मुश्किल होता है। मुझे लगता है कि सेनाओं के साथ यह सबसे बड़ा अन्याय हुआ है। नौसेना को छोड़कर, जिसके पास एक स्पष्ट, कुदरती सरहद है-अभी आप इसी समस्या से जूझ रहे हैं। ये सही नहीं है। सौ मील इस तरफ, सौ मील उस तरफ होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर ये काम थोड़ी समझदारी और न्याय से किया गया होता तो आज हालात ऐसे नहीं होते। सिर्फ  गांव ही नहीं, इन लकीरों ने घरों को भी बांट दिया। आप ऐसी बेतुकी लकीरें खींचते हैं, और उम्मीद करते हैं कि उसकी सुरक्षा की जाए, सेनाओं से उम्मीद है कि वे उस बेतुकी लकीर की सुरक्षा करें। मैं पूरे सम्मान के साथ ये कह रहा हूं क्योंकि आज मैं ‘हॉल ऑफ फेम’ देखने गया, मैंने पहले विश्व युद्ध से जुड़ी प्रदर्शनी भी देखी थी, जो दिल्ली में सेना ने लगाई थी, और मैंने अपनी सेना के इतिहास के बारे में भी थोड़ा बहुत पढ़ा है। कृपया आप मेरी बात को सही अर्थ में समझें। लोगों को देश के लिए जीना चाहिए, लोगों को देश के लिए मरना नहीं चाहिए, बशर्ते कोई गंभीर परिस्थिति न हो, जिसे टाला न जा सके।

पर जब आप एक अप्राकृतिक सीमा की सुरक्षा करते हैं, तो बहुत सारे लोग बिना वजह मारे जाते हैं। हम इसका गुणगान कर सकते हैं, ठीक है। जिन लोगों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए, हमें उनका सम्मान करना चाहिए। ये सब ठीक है। लेकिन फिर भी, एक इंसान मर गया। हम इससे कितने भी अर्थ और भावनाएं जोड़ सकते हैं। लेकिन एक इंसान तो मर गया। जिस इंसान को मरना नहीं था, वो मर गया। ये अच्छी बात नहीं है। हमने बहुत बेतुकी लकीरें खींच दी हैं। उनकी रखवाली करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि कोई नहीं जानता कि आखिर वो लकीर है कहां? मुझे यकीन है, आप बॉर्डर पर रहते हैं, फिर भी आपको नहीं पता कि असल में लकीर कहां है? क्योंकि इन लकीरों को ठीक से मार्क करने के लिए कोई भौगोलिक विशेषताएं नहीं हैं। शायद कुछ जगह आप कहेंगे कि ये नदी हमें बांटती है-ठीक है। ये आसान है। पर खासतौर पर पश्चिमी बॉर्डर इस तरह खींचा गया है कि कोई नहीं जानता कि लकीर कहां है?




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