सत्य मार्ग

October 19, 2020

निसंदेह सत्य का मार्ग उतना कठिन नहीं है। जितना दिखता है।

जो वस्तु व्यवहार में नहीं आती, जिससे हम दूर रहते हैं, वह अजनबी, विचित्र तथा कष्टसाध्य लगती है, पर जब वह समीप आती है, तो वह स्वाभाविक एवं सरल बन जाती है। चूंकि हमारे जीवन में झूठ बोलने की आदत ने गहराई तक अपनी जड़ जमा ली है। बात-बात में झूठ बोलते हैं। बच्चों की हंसी-जिंदगी में, शेखी बघारने के लिए, लोगों को आश्चर्य में डालने के लिए अक्सर अतिरंजित बात कही जाती है। इनसे कुछ विशेष लाभ होता हो, या कोई महत्त्वपूर्ण स्वार्थ सधता हो, सो बात भी नहीं है, पर यह सब आदत में सम्मिलित हो गया है, इसलिए अनजाने ही हमारे मुंह से झूठ निकलता रहता है।

वेदों में स्थान-स्थान पर सत्य की महत्ता को समझाया गया है और सत्यवादी तथा सत्यनिष्ठ बनने के लिए प्रेरणा दी गई है। सत्य का मार्ग चलने में सरल है। यह मार्ग संसार सागर से तरने के लिए बनाया गया है। स्वार्थ के लिए, आर्थिक लाभ के लिए, व्यापार में झूठ बोलना तो आज उचित ही नहीं, एक आवश्यक बात भी समझी जाने लगी है। ग्राहक को भाव बताने में अक्सर दुकानदार झूठ बोलते हैं। घटिया को बढ़िया बताते हैं, चीज के दोषों को छिपाते हैं और गुणों को अतिरंजित करके बताते हैं, जिनसे भोला ग्राहक धोखे में आकर सस्ती और घटिया चीज को बढिया समझ कर अधिक पैसे में खरीद ले।

दुकानदार की इस आमप्रवृत्ति को, ग्राहक भी समझने लगे हैं और वे मन ही मन दुकानदार को झूठा, ठग तथा अविश्वस्त मानते हैं। उसकी बात पर जरा भी विश्वास नहीं करते। अपनी निज की समझ का उपयोग करते हैं, दुकानदार की सलाह को ठुकरा देते हैं, दस जगह घूमकर भाव-ताव मालूम करते हैं। चीजों का मुकाबला करते हैं, तब अंत में वस्तु को खरीदते हैं। यह व्यापारी के लिए एक बड़ी लज्जा की बात है कि उसे आमतौर से झूठा और बेईमान समझा जाय, उसकी प्रत्येक बात को अविश्वास और संदेह की दृष्टि से देखा जाए। जिसे अविश्वस्त समझा जाए, जिनकी नीयत पर संदेह किया जाए, जिसे ठग, धोखेबाज और बहकाने वाला माना जाए, वह नि:संदेह अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा खो चुका। इतनी कीमती वस्तु खोकर यदि किसी ने धन कमा भी लिया, तो इसमें न कोई गौरव की बात है और न प्रसन्नता की।




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