गम्पेला बुर्किना फासो का एक छोटा स्थान है जहां के चिकित्सा केंद्र में पिछले करीब एक साल से रेफ्रिजेटेर काम नहीं कर रहा है।
दुनिया भर में ऐसे कई स्थान हैं जहां यह सुविधा अभी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में कोरोना वायरस पर काबू के अभियान में बाधा आ सकती है। इस महामारी को लगभग आठ महीने हो चुके हैं और विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि दुनिया के बड़े हिस्सों में प्रभावी टीकाकरण कार्यक्रम के लिए पर्याप्त प्रशीतन की कमी है। इसमें मध्य एशिया का अधिकतर हिस्सा, भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका का भी एक बड़ा हिस्सा इसमें शामिल है।
पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले कोरोना वायरस के टीके को सुरक्षित रखने के लिए फैक्ट्री से लेकर सिरिंज (सुई) तक लगातार ‘कोल्ड चेन’ की जरूरत होगी। लेकिन विकासशील देशों में ‘कोल्ड चेन’ बनाने की दिशा में हुई प्रगति के बाद भी दुनिया के 7.8 अरब लोगों में से लगभग तीन अरब लोग ऐसे हैं जिन तक कोविड-19 पर काबू पाने के लिए टीकाकरण अभियान की खातिर तापमान नियंत्रित भंडारण नहीं है। इसका नतीजा यह होगा कि दुनिया भर के निर्धन लोग जो इस घातक वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, उन तक यह टीका सबसे अंत में पहुंच सकेगा।
कोरोना वायरस टीकों के लिए ‘कोल्ड चेन’ बनाए रखना धनी देशों के लिए भी आसान नहीं होगा खासकर तब जबकि इसके लिए शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस नीचे (माइनस 94 डिग्री एफ) के आसपास के तापमान की आवश्यकता होती है। बुनियादी ढांचे और शीतलन प्रौद्योगिकी के लिए पर्याप्त निवेश नहीं हुआ है जिसकी टीकों के लिए जरूरत होगी। टीके के लिए ‘कोल्ड चेन’ गरीबों के खिलाफ एक और असमानता है जो अधिक भीड़ वाली स्थितियों में रहते हैं और काम करते हैं। इससे वायरस को फैलने का मौका मिलता है।
एपी गम्पेला (बुर्किना फासो) |
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