मशहूर पत्रकार विनोद दुआ नहीं रहे, कोविड के बाद की तकलीफों से पीड़ित थे

December 4, 2021

67 वर्षीय मशहूर पत्रकार विनोद दुआ का शनिवार को निधन हो गया। वह अपोलो अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थे।

उनकी बेटी मल्लिका दुआ ने बताया कि दुआ का अंतिम संस्कार रविवार को यहां लोधी रोड स्थित शवदाह गृह में किया जाएगा।

इस साल की शुरुआत में कोविड के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था और कोरोना वायरस से संक्रमित होने के चलते इसी साल जून में उन्होंने अपनी पत्नी, रेडियोलॉजिस्ट पद्मावती ‘चिन्ना’ दुआ को खो दिया था। कोविड की दूसरी लहर के चरम पर रहने के दौरान विनोद दुआ और उनकी पत्नी गुड़गांव के एक अस्पताल में भर्ती थे। दुआ का स्वास्थ्य तब से

इस साल की शुरुआत में महामारी जब चरम पर थी, उन्होंने अपनी पत्नी, प्रसिद्ध रेडियोलॉजिस्ट पद्मावती 'चिन्ना' को खो दिया था। पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए पद्मश्री और रामनाथ गोयनका पुरस्कार से सम्मानित विनोद दुआ कोविड से तो उबर गए, लेकिन उसके बाद की तकलीफों से पीड़ित थे। वह 67 वर्ष के थे।

हाल ही में, दुआ उस समय चर्चा में आए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने केदार नाथ सिंह मामले में अपने 1962 के फैसले को लागू करते हुए हिमाचल प्रदेश में एक भाजपा विधायक द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत उनके खिलाफ लाए गए देशद्रोह के आरोप को रद्द कर दिया था। दुआ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आलोचनात्मक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था।

विनोद और चिन्ना दुआ की कॉमेडियन बेटी मल्लिका दुआ ने इंस्टाग्राम पर अपने पिता के निधन की खबर साझा करते हुए लिखा, "उन्होंने एक अद्वितीय जीवन जिया। वह दिल्ली की शरणार्थी कॉलोनियों में 42 वर्षो तक रहते हुए पत्रकारिता की उत्कृष्टता के शिखर पर पहुंचे। वह हमेशा सत्ता को आईना दिखाने के लिए सच बोलते रहे।"



सन् 1974 में विनोद दुआ को देखकर एक पीढ़ी बड़ी हुई है। उन दिनों वह श्वेत-श्याम टेलीविजन के युग में युवाओं के लिए दूरदर्शन के लोकप्रिय कार्यक्रम 'युवा मंच' की एंकरिंग किया करते थे।

यह पीढ़ी जोशीले, मिलनसार और राजनीतिक रूप से मुखर विनोद दुआ को हिंदी टेलीविजन को 'कूल' बनाने वाले पहले व्यक्तित्व के रूप में याद करती है। बाद के दिनों में वह दिवंगत पत्रकार एस.पी. सिंह और उदयन शर्मा के लुटियंस की दिल्ली और हिंदी हृदयभूमि के बीच 'सेतु' बने रहे।

दोस्त उन्हें प्यार से लजीज खाना और पसंदीदा व्हिस्की और देहाती सरायकी बोली में एक गीत के लिए याद करते हैं। यह बोली इस समय पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और डेरा इस्माइल खान में बोली जाती है। देश विभाजन के बाद उनके माता-पिता को पाकिस्तान छोड़कर शरणार्थी के रूप में भारत आना पड़ा था।

दुआ की मित्रमंडली की भावनाओं को प्रतिध्वनित करते हुए मल्लिका ने अपनी श्रद्धांजलि में लिखा, "वह अब हमारी मां, उनकी प्यारी पत्नी चिन्ना के साथ स्वर्ग में हैं, जहां वे गाना, खाना बनाना, यात्रा करना और एक-दूसरे को दीवार से ऊपर ले जाना जारी रखेंगे।"

विनोद दुआ की पहचान यूं तो एक हिंदी पत्रकार के रूप में थी, मगर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया था और यहां तक कि मास्टर डिग्री भी ली थी, लेकिन वह एक स्वाभाविक कहानीकार थे और जिस भाषा में सबसे अधिक मुखर थे, वह थी हिंदी।

श्रीराम थिएटर में सूत्रधार समूह के साथ काम करने और एक स्ट्रीट थिएटर कलाकार के रूप में पहचान बनाने के बाद दुआ भारत में टेलीविजन के शुरुआती चेहरों में से एक बन गए। हिंदी टेलीविजन की दुनिया में उनकी शुरुआत 'युवा मंच' से हुई। इस कार्यक्रम में उन्होंने मनोज रघुवंशी के साथ सह-एंकर किया था।

वर्ष 1987 में दुआ ने 'जनवाणी' कार्यक्रम की एंकरिंग शुरू की थी। वह राजीव गांधी युग था। इस कार्यक्रम में आम इंसान मंत्रियों से सवाल पूछा करता था।

हालांकि, जिस कार्यक्रम ने उन्हें फिर से प्रसिद्ध बना दिया, वह था एनडीटीवी इंडिया का 'जायका इंडिया का' जिसमें उन्हें देशभर में घूमते हुए मिठाई की दुकानों और ढाबों की खोज करते हुए देखा गया। इस कार्यक्रम ने कुछ ढाबा मालिकों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध और अमीर बना दिया।

हाल के दिनों में दुआ एक लोकप्रिय समाचार वेबसाइट पर 10 मिनट का कार्यक्रम 'जन गण मन की बात' प्रस्तुत किया करते थे।

विनोद दुआ को न केवल हिंदी पत्रकारिता को मुखर रखने के लिए, बल्कि एक अच्छे इंसान, स्नेही और स्वागत योग्य मुस्कान वाले प्रिय मित्र के रूप में भी याद किया जाएगा।


सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली

News In Pics