
वर्ष 1737 में (तत्कालीन) कलकत्ता में आए चक्रवात से कुछ लोग ने इसकी तुलना की, जबकि अन्यों ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में ऐसा कुछ कभी नहीं देखा। घर तबाह होने के साथ ही बड़े पैमाने पर पेड़ उखड़ गए हैं और शहर में प्रतिष्ठित संरचनाओं को बहुत नुकसान पहुंचा है।
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