भारत अमेरिका का दोस्त नहीं है और न ही कभी होगा : कैंपबेल

April 1, 2023

अमेरिकी राष्ट्रपति के उप सहायक और इंडो-पैसिफिक के समन्वयक कर्ट कैंपबेल ने कहा है कि भारत संयुक्त राज्य अमेरिका का दोस्त नहीं है और न ही कभी होगा।

शीर्ष अधिकारी कैंपबेल ने जोर देकर कहा है कि चीन द्वारा भारत-चीन सीमा पर उठाए गए कुछ कदम उकसावे वाले रहे हैं। अमेरिका भारत के साथ अपने संबंधों को और गहरा करना चाहता है।

कैंपबेल ने वाशिंगटन स्थित एक थिंक-टैंक से कहा कि भारत संयुक्त राज्य अमेरिका का दोस्त नहीं है और न ही कभी होगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारत अमेरिका करीबी सहयोगी नहीं बन सकता।

उन्होंने कहा, हम दोस्त नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम करीबी सहयोगी नहीं हो सकते और बहुत सी चीजें साझा नहीं कर सकते। इस तरह हमें उस भूमिका को समझने की जरूरत है जो भारत वैश्विक मंच पर एक महान देश के रूप में निभाएगा।

उन्होंने आगे कहा, हम इसे प्रोत्साहित करना चाहते हैं और इसका समर्थन करना चाहते हैं। हम भारत के साथ अपने संबंध को गहरा करना चाहते हैं, जो पहले से ही बहुत मजबूत है।

भारत-अमेरिका रिश्ते बहुत अहम

कैंपबेल ने आगे कहा कि भारत-अमेरिका संबंध 21वीं सदी में अमेरिका के लिए सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध है। उन्होंने कहा, मेरा मानना ​​है कि यह बात तो तय है कि हम एक साथ और अधिक निकटता से काम करने वाले हैं। मैं मानता हूं कि हमारे लोगों का संबंध मजबूत है, हम एक ऐसे जीवंत रिश्ते में हैं जो गहरा, समृद्ध और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होता जा रहा है।

कदम से कदम मिलाकर चलना जरूरी

कैंपबेल ने कहा कि भारत मदद करने के लिए हर क्षेत्र में उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इसके लिए अमेरिका अपने लोगों को भारतीय लोगों के साथ जोड़ने पर जोर दे रहा है।

उन्होंने कहा, हम रक्षा से संबंधित मुद्दों पर अधिक काम कर रहे हैं और इसके लिए हमारे दोनों देशों के लोग जुड़ रहे हैं। हम चाहते हैं कि हमारे विश्वविद्यालयों में अधिक भारतीय छात्र आकर पढ़ें और हम यह भी चाहते हैं कि भारतीय विश्वविद्यालयों में अधिक अमेरिकी छात्र पढ़ें।

उन्होंने आगे कहा, हम शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य हर क्षेत्र में दोनों देशों के लोगों को जोड़ना चाहते हैं। हमने अंतरिक्ष में एक साथ काम करने के प्रयासों की घोषणा की है। इसलिए हमारा एजेंडा असाधारण रूप से समृद्ध है। हमारी महत्वाकांक्षाएं बहुत अधिक हैं।

मोदी के प्रीमियरशिप के दौरान भारत-संयुक्त राज्य के संबंधों में हुआ काफी सुधार

2014 से नरेंद्र मोदी के प्रीमियरशिप के दौरान भारत-संयुक्त राज्य के संबंधों में काफी सुधार हुआ है। वर्तमान में, भारत और अमेरिका एक व्यापक और विस्तारित सांस्कृतिक, रणनीतिक, सैन्य और आर्थिक संबंध साझा करते हैं। जो विश्वास की कमी की विरासत को दूर करने के लिए विश्वास निर्माण उपायों (CBM) को लागू करने के चरण में है।

प्रतिकूल अमेरिकी विदेश नीतियों और प्रौद्योगिकी इनकार के कई उदाहरणों द्वारा लाया गया, जिसने कई दशकों से संबंधों को प्रभावित किया है।

2008 के यूएस-इंडिया सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट के समापन के बाद अवास्तविक उम्मीदों (जिसने सुरक्षा उपायों और दायित्व पर संविदात्मक गारंटी के लिए परमाणु ऊर्जा उत्पादन और नागरिक-समाज के समर्थन की दीर्घकालिक व्यवहार्यता के बारे में नकारात्मक जनमत को कम करके आंका) ने व्यावहारिक यथार्थवाद का मार्ग प्रशस्त किया है और सहयोग के उन क्षेत्रों पर फिर से ध्यान केंद्रित करना जो अनुकूल राजनीतिक और चुनावी सहमति का आनंद लेते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी भारत-अमेरिकी दोस्ती को टेबल लाए

अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में अमेरिका ने भारत के समक्ष फाउंडेशनल समझौतों की पेशकश की थी, जिसने दोनों देशों के औपचारिक संबंधों को दोस्ती की टेबल पर ला दिया। तब वाजपेयी ने घोषणा की थी कि भारत और अमेरिका अब 'स्वाभाविक सहयोगी' हैं।

अमेरिका से क्या चाहता है

अमेरिका भारत से एक विस्तारित व्यापार संबंध चाहता है जो पारस्परिक और निष्पक्ष हो. फिलहाल अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना हुआ है. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2019- 20 में अमेरिका और भारत के बीच 88.75 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ। इससे पिछले वर्ष 2018-19 में यह 87.96 अरब डॉलर रहा था।

भारत अमेरिका रक्षा समझौता कब हुआ?

वर्ष 2005 में 'भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के लिये नए ढाँचे' पर हस्ताक्षर के साथ रक्षा संबंध भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के एक प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरा है, जिसे वर्ष 2015 में 10 वर्षों के लिये और अद्यतन किया गया था।

लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट

2016 में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए और भारत को संयुक्त राज्य का एक प्रमुख रक्षा भागीदार घोषित किया गया।

भारत और यू.एस के बीच द्विपक्षीय संबंध पर भारतीय प्रवासियों की सॉफ्ट पॉवर का प्रभाव

अमेरिका में भारतीय प्रवासी दोनों देशों के बीच संबंधों की पुनः रचना में योगदान दे रहा है। भारत दो कारणों के आधार पर भारतीय-अमेरिकियों के अविर्भाव को एक प्रतिष्ठित समुदाय के रूप में मान्यता देता है।

पहला, भारतीय अमेरिकी लोग अमेरिकी चुनावी राजनीति में एक महत्वपूर्ण वोट बैंक के रूप में सामने आए हैं। दूसरा, भारतीय-अमेरिकी लोग काफी शिक्षित और बेहद अमीर हैं। जनसंख्या में वृद्धि और आर्थिक शक्ति में हिस्सेदारी के साथ, भारतीय अमेरिकी पैरवी का ध्यान भारत की समस्याओं की ओर झुक गया है। उदाहरण के लिए, अप्रवासन कानून के संबंध में, भारतीय प्रवासियों ने यू.एस की 1965 अप्रवासन नीति में भारतीयों के लिए अप्रवासन कानूनों के पक्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।


समयलाइव डेस्क
नई दिल्ली

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