
उच्चतम न्यायालय के 75 साल के इतिहास में इस न्यायालय में पदोन्नत होने वाली ग्यारहवीं महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गयीं। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर उनका कार्यकाल साढ़े तीन साल का रहा।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी आर गवई ने सेवानिवृत्त होने जा रहीं न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की सराहना करते हुए शुक्रवार को कहा कि अधीनस्थ न्यायपालिका से लेकर उच्चतम न्यायालय तक का उनका सफर सराहनीय रहा।
न्यायमूर्ति गवई ने निवर्तमान न्यायाधीश की ‘‘निष्पक्षता, दृढ़ता, कड़ी मेहनत’’ के साथ ही ‘‘समर्पण और आध्यात्मिकता की भावना’’ की भी सराहना की।
न्यायमूर्ति त्रिवेदी शीर्ष न्यायालय के कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहीं। उन्हें जुलाई 1995 में गुजरात में एक निचली अदालत के न्यायाधीश के रूप में शुरुआत करने के बाद शीर्ष न्यायालय में पदोन्नत होने का गौरव प्राप्त हुआ।
उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर न्यायमूर्ति त्रिवेदी के परिचय में कहा गया है, ‘‘यह सुखद संयोग है कि जब उनकी (न्यायमूर्ति त्रिवेदी) नियुक्ति हुई, तब उनके पिता पहले से ही शहर की सिविल एवं सत्र अदालत में न्यायाधीश के रूप में काम कर रहे थे। लिम्का बुक ऑफ इंडियन रिकॉर्ड्स ने 1996 के अपने संस्करण में यह प्रविष्टि दर्ज की है कि ‘पिता-पुत्री एक ही अदालत में न्यायाधीश हैं’।’’
न्यायमूर्ति त्रिवेदी को 31 अगस्त, 2021 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। तब तीन महिलाओं सहित रिकॉर्ड नौ नए न्यायाधीशों को पद की शपथ दिलाई गई थी।
शुक्रवार को न्यायमूर्ति त्रिवेदी प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली औपचारिक पीठ में शामिल रहीं, जो शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त होने की परंपरा है।
वह पांच न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ का हिस्सा थीं, जिसने 3:2 के बहुमत से नवंबर 2022 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखा, जिसके दायरे से एससी/एसटी/ओबीसी श्रेणियों के गरीबों को बाहर रखा गया था।
सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति त्रिवेदी शामिल थीं, ने अगस्त 2024 में 6:1 के बहुमत से माना कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है। हालांकि, न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने अपने 85 पन्नों के असहमति वाले फैसले में कहा कि केवल संसद ही किसी जाति को एससी सूची में शामिल कर सकती है या उसे बाहर कर सकती है, और राज्यों को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
उत्तरी गुजरात के पाटन में 10 जून, 1960 को जन्मी बेला त्रिवेदी ने लगभग 10 वर्षों तक गुजरात उच्च न्यायालय में वकील के रूप में काम किया। 10 जुलाई, 1995 को उन्हें अहमदाबाद में निचली अदालत का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उन्होंने उच्च न्यायालय में रजिस्ट्रार (विजिलेंस) और गुजरात सरकार में विधि सचिव जैसे विभिन्न पदों पर काम किया।
सत्रह फरवरी, 2011 को उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। न्यायमूर्ति त्रिवेदी को राजस्थान उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्होंने जून 2011 से फरवरी 2016 में मूल उच्च न्यायालय में वापस भेजे जाने तक काम किया।
भाषा नई दिल्ली |
Tweet