लोकसभा चुनाव:पहले चरण का चुनाव पैटर्न क्यों है चिंता का सबब ?

April 20, 2024

लोकसभा चुनाव में पहले चरण का मतदान संपन्न होने के बाद सभी पार्टियां अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही हैं।

अमूमन राजनेता ऐसे ही बयान देते हैं। ऐसा माना जाता रहा है कि दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना है तो यूपी और बिहार में बढ़िया परफार्मेंस करना ही पड़ता है। जिस भी पार्टी ने इन दो राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश में झंडा गाड़ दिया तो फिर उस पार्टी के नेता को लाल किले पर झंडा फहराने से कोई नहीं रोक सकता। फिलहाल उत्तर प्रदेश की आठ और बिहार की चार सीटों पर हुए चुनाव का पैटर्न देखें तो इस बार कहानी कुछ अलग ही लग रही है। 62.37 फीसदी मतदान के साथ इस बार जनता का उत्साह कुछ कम दिखाई दिया है। कई ऐसी सीटें सामने आई हैं जहां पर पिछले चुनाव के मुकाबले कम वोटिंग देखी गई है। अब दावे अपनी जगह हैं, पार्टियों का जीत के लिए आश्वस्त रहना भी जगजाहिर है, लेकिन अगर पिछले चुनावों की वोटिंग प्रतिशत को समझने की कोशिश की जाए, तो कौन पार्टी आगे है, इसकी एक झलक जरूर मिल सकती है। पहले चरण में यूपी की 8 सीटों पर वोटिंग हुई है, वहां भी 6 सीटें हाई प्रोफाइल मानी जा सकती हैं। उन सीटों पर बड़े चेहरों के बीच में लड़ाई है। कैराना में इस बार बीजेपी की तरफ से प्रदीप चौधरी ताल ठोक रहे हैं, सपा की इकरा हसन खड़ी हैं और बसपा के श्रीकांत राणा भी किस्मत आजमा रहे हैं। इस बार के चुनाव में कैराना में कम वोटिंग देखने को मिली, चुनाव आयोग के मुताबिक इस बार यहां पर वोटिंग प्रतिशत 61.17 फीसदी रहा है।

अब कैराना सीट का ट्रेंड बताता है कि जब 2014 के लोकसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत में एक बड़ा उछाल देखने को मिला था, वो परिवर्तन का वोट माना गया, उस चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की। इसे ऐसे समझिए कि 2009 में कैराना में 56.59% वोटिंग हुई थी, तब बसपा ने वहां से जीत दर्ज की, लेकिन 2014 के चुनाव में आंकड़ा 73.08 चला गया, यानी कि 17 फीसदी के करीब वोटिंग में इजाफा देखने को मिला। उस बड़े उछाल ने ही कैराना की सीट बीजेपी की झोली में डाल दी। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में कैराना में वोटिंग प्रतिशत में थोड़ा सा गिर गया, आंकड़ा 67.41 दर्ज किया गया, यानी कि तब 6 फीसदी के करीब मतदान कम हुआ। अब क्योंकि उस चुनाव में वोट प्रतिशत में गिरावट 2014 जैसी नहीं थी, ऐसे में कैराना की सीट बीजेपी के खाते में ही रही और वहां कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिला। इस बार कैराना में 61.17 फीसदी मतदान हुआ है, यानी कि पिछली बार के मुकाबले फिर 6 प्रतिशत वोटिंग गिर गई है। अगर इस तरह से देखा जाए तो इस बार कैराना सीट पर खेल भी हो सकता है। जानकार मानते हैं कि जब वोटिंग एक्स्ट्रीम अंदाज में होती है, नतीजे परिवर्तन वाले देखने को मिल सकते हैं, यानी कि अगर काफी कम वोटिंग तो भी परिवर्तन के संकेत और काफी ज्यादा वोटिंग, तब भी बदलाव की बहार।

इसी तरह अगर मुजफ्फरनगर की बात की जाए तो यहां पर इस बार 59.29 प्रतिशत वोट पड़ा है। बीजेपी ने यहां से एक बार फिर संजीव बालियान को उतारा है, सपा ने हरेंद्र मलिक और बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को मौका दिया है। समझने वाली बात ये है कि मुजफ्फरनगर में 2009 के चुनाव में 54.44 प्रतिशत वोट पड़े थे, वहीं 2014 में मोदी लहर के दौरान वोटिंग प्रतिशत बढ़कर 69.74 पहुंच गई। यानी की एक तरह से 15 फीसदी का बड़ा और निर्णायक इजाफा देखने को मिला। वो वोट परिवर्तन के लिए पड़ा था और बीजेपी के संजीव बालियान ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2019 के चुनाव में वोटिंग 68.20 प्रतिशत दर्ज हुई जो 2014 की तुलना में ज्यादा कम नहीं थी, यानी कि ना परिवर्तन की लहर थी और ना ही कोई बड़ी नाराजगी। इसी वजह से तब एक बार फिर बीजेपी के संजीव बालियान ने वहां से जीत दर्ज की। अब अगर इस बार के आंकड़ों पर नजर डालें तो मुजफ्फरनगर सीट पर 59.29 फीसदी वोट पड़े हैं, यानी कि यहां भी 9 फीसदी के करीब गिरावट देखने को मिल गई है। इस समय ये कम हुई वोटिंग ही बीजेपी के लिए सबसे बड़ा चिंता का सबब बन सकता है। जानकार सवाल उठा रहे हैं कि कहीं अति विश्वास की वजह से बीजेपी के वोटर ही कम संख्या में तो बाहर नहीं निकले? अब पुख्ता रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन पिछले कुछ चुनावों का ट्रेंड बताता है कि ज्यादा कम वोटिंग होने पर सत्ताधारी दल के लिए मुश्किलें बढ़ भी सकती हैं।

यूपी की ही सहारनपुर सीट की बात करें तो इस बार यहां पर 65.95 फीसदी मतदान हुआ है। बीजेपी ने इस सीट से फिर राघव लखनपाल को मौका दिया है, वहीं इंडिया गठबंधन ने इमरान मसूद को उतारा है। बसपा की तरफ से माजिद अली खड़े हैं। इस सीट पर 2009 में 63.25 प्रतिशत वोट पड़े थे, तब बीजेपी के राघव लखनपाल जीत गए, फिर मोदी लहर के दौरान 11 फीसदी का उछाल आया, लेकिन नतीजा वहीं- राघव की जीत। 2019 की बात करें तो 70 फीसदी मतदान रहा, लेकिन जीत फिर बीजेपी के हाथ में ही गई। यानी कि सहारनपुर एक ऐसी सीट रही है जहां पर पिछले 15 सालों से एक ट्रेंड बरकरार है, ज्यादा या कम वोट प्रतिशत यहां फर्क नहीं पड़ रहा है। इस बार सहारनपुर में 65.95 फीसदी मतदान हुआ है, पिछली बार की तुलना में ये 4 प्रतिशत कम है, लेकिन उतना बड़ा अंतर भी नहीं है कि कोई बड़े खेल की गुंजाइश दिखाई दे जाए। रामपुर सीट की बात करें तो यहां पर इस बार 54.77 प्रतिशत मतदान हुआ है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि पिछली बार की तुलना में 9 फीसदी कम वोटिंग हुई है, 2014 में जब बीजेपी ने ये सीट सपा से छीनी थी, तब रामपुर में 2009 की तुलना में 7 फीसदी ज्यादा वोट पड़ा था। यानी कि वोट बढ़ने से बीजेपी को फायदा होता भी दिख जाता है, लेकिन रामपुर में ये प्रतिशत घट गया है, क्या माना जाए बीजेपी से रामपुर सीट सपा छीन लेगी? अगर बात करें बिहार की तो यहां भी वोटिंग प्रतिशत गिरा है। जमुई में 55.21 फीसद वोट पड़े थे, इस बार ये आंकड़ा 50 फीसदी को छू रहा है। नवादा में 49.33 प्रतिशत मतदान हुआ था, 2024 में महज 41.50 फीसदी वोटिंग हुई। गया में 56.16 फीसदी मतदान हुआ था, इस बार 52 फीसदी मतदान दर्ज किया गया। औरंगाबाद में 53.63 फीसदी लोगों ने वोट डाला था, इस साल 50 फीसदी ही मतदान हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना 2024 में 5 फीसदी कम मतदान हुआ।

बीजेपी के लिए एक बड़ा चिंता का सबब ये भी बन सकता है कि वो जहां-जहां पर सबसे ज्यादा मजबूत है, वहां पर इस बार जनता में कम उत्साह देखने को मिला है। बिहार में इस बार सिर्फ 47 फीसदी के करीब मतदान हुआ है, जो पिछली बार 53 फीसदी था। इसी तरह मध्य प्रदेश में पिछली बार 75 प्रतिशत मतदान देखा गया जो इस बार घटकर 63 फीसदी रह गया है। अगर राजस्थान पर गौर करें तो वहां तो ऐसा देखा गया है कि वोटिंग प्रतिशत घटने से बीजेपी को ज्यादा नुकसान होता है। वैसे अगर इस वोटिंग प्रतिशत से बड़ी पिक्चर समझने की कोशिश करें तो यहां भी एनडीए खेमे के लिए ज्यादा अच्छी खबर नहीं निकलती है। पिछले 12 लोकसभा चुनाव के नतीजों का अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि पांच बार वोट प्रतिशत गिरा था और उसका सीधा फायदा विपक्षी पार्टियों को हुआ और सत्ता केंद्र में बदल गई। इसकी शुरुआत 1980 में हो गई थी जब वोटिंग के बाद जनता पार्टी हार गई और इंदिरा गांधी ने फिर सरकार बनाई। 1989 में भी वोट प्रतिशत गिरा और कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी, तब वीपी सिंह पीएम बन गए। 1991 में फिर थोड़ी सी गिरावट देखने को मिली और उसका फायदा कांग्रेस को मिला। कुल मिलाकर पहले चरण के चुनाव के बाद इंडिया ब्लॉक के नेता शायद राहत की सांस ले रहे होंगे।
 

 

 


शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली

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