भोजपुरी स्टार पवन सिंह के चुनाव लड़ने पर रवि किशन, मनोज तिवारी और निरहुआ क्यों हैं चिंतित ?

April 28, 2024

भोजपुरी इंडस्ट्री के तीन स्टार और वर्तमान सांसद रवि किशन , मनोज तिवारी और दिनेश लाल यादव निरहुआ एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं।

चौथे स्टार पवन सिंह हैं, जो इस समय बिहार की काराकाट लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं, बल्कि आगामी ९ मई को वो नामांकन भी कर देंगे। पवन सिंह को भोजपुरी दर्शक पावर स्टार भी कहते हैं। पवन सिंह को बीजेपी ने वेस्ट बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट से उम्मीदवार भी बनाया था लेकिन पवन  सिंह ने वहां से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। उसी सीट से बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुध्न सिन्हा तृणमूल कांग्रेस की तरफ से उम्मीदवार हैं। पवन सिंह ने वहां से चुनाव लड़ने में रूचि क्यों नहीं दिखाई, उन्होंने वहां से चुनाव लड़ने से मना क्यों कर दिया, इसकी जानकारी तो किसी के पास नहीं है, लेकिन उन्होंने काराकाट से चुनाव लड़ने का एलान करके बहुतों को चौंका जरूर दिया है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि पवन सिंह की मंशा क्या है? सवाल यह भी उठ रहा है कि अंदरखाने उन्हें किस राजनैतिक पार्टी का समर्थन मिल रहा है? उधर उनके साथी भोजपुरी स्टार रवि किशन , मनोज तिवारी और दिनेश लाल यादव भी शायद गफलत में हैं, क्योंकि मनोज तिवारी ने कुछ दिन पहले कहा था कि पवन सिंह मान जायेंगे, वो निर्दलीय चुनाव नहीं लड़ेंगे,बावजूद इसके पवन सिंह पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतर चुके हैं ।

आगे बढ़ने से पहले यहां एक बात बता दें कि पवन सिंह को लेकर तमाम तरह की खबरें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका चुनाव कैसा होगा ,वो एनडीए प्रत्यशी को कैसी टक्कर देंगे जैसी बातों का बहुत बार जिक्र हो चूका है, लेकिन अभी तक इस बात का जिक्र कहीं नहीं हुआ है कि अगर पवन सिंह चुनाव जीत गए तो भोजपुरी के बाकी तीन स्टारों का क्या होगा? शायद इसी बात को लेकर भोजपुरी के बाकी स्टार आज चिंतित हो रहे होंगे। इस चुनाव में कुछ भी हो सकता है। रवि किशन शायद अपना चुनाव जीत जाएँ लेकिन मनोज तिवारी और दिनेश लाल यादव का चुनाव फंसा हुआ है। दूसरी तरफ पवन सिंह के पक्ष में माहौल बनता हुआ दिखाई दे रहा है। चलिए उन तीन स्टारों की बात तो हम आगे करेंगे। पहले आइए यह जानने की कोशिश करते हैं कि वो कौन से ऐसे फैक्टर हैं, जो पवन सिंह को चुनाव जीता सकते हैं। पहला फैक्टर तो यह है कि आज तक काराकाट सीट से कोई भी स्वर्ण उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत है, जिसका मलाल वहां के स्वर्ण वोटरों को रहता होगा।

आम तौर सभी पार्टियां यहां से किसी न किसी कोइरी जाति के लोगों को ही उम्मीदवार बनाती रहीं हैं। वर्तमान सांसद महाबली भी कोइरी बिरादरी से ही आते हैं लेकिन इस बार उनका टिकट काटकर एनडीए ने उपेंद्र कुशवाहा को अपना उम्मीदवर बनाया है। इस बात से शायद महाबली नाराज भी होंगे। खैर उपेंद्र कुशवाहा भी कोइरी ही हैं। उधर सीपीआईएमएल ने भी कोइरी बिरादरी के राजा राम सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। यहां कोइरी और कुर्मी जाति के वोटरों की संख्या ढाई लाख से ज्यादा है, लेकिन राजपूत वोटर भी दो लाख के आस-पास हैं। पवन सिंह राजपूत जाति से ही आते हैं। यादव वोटर भी ढाई लाख हैं । मुस्लिम अगर यहां डेढ़ लाख के आस पास है तो ब्राह्मण और भूमिहार भी करीब सवा लाख के आस-पास है। वहीँ वैश्य वोटर दो लाख के करीब हैं। यह तय है कि एनडीए प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा और सीपीआईएमएल प्रत्याशी राजा राम सिंह दोनों कोइरी होने के नाते एक दूसरे का वोट काटेंगे। यानी कोइरी और कुर्मी वोटर दोनों के हिस्सों में आएंगे। मुस्लिम वोटर भारी संख्या में सीपीआईएमएल प्रत्याशी के साथ जायेगा, जबकि यादव वोटर भी बहुत हद तक सीपीआईएमएल प्रत्याशी के साथ ही जायेगा। अब रही बात स्वर्ण और वैश्य वोटरों की।

अगर इन वोटरों ने पवन सिंह को अपना समर्थन दे दिया तो यहां की लड़ाई मजेदार हो जायेगी। यानि कुल मिलाकर एनडीए प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा यहां से फंसते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में सम्भव है कि पवन सिंह शायद यहाँ से पहली बार एक स्वर्ण उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीत कर दिल्ली पहुंचे। अब बात करते हैं भोजपुरी के उन तीन स्टारों की जो इस समय चुनाव मैदान में हैं। अगर पवन सिंह चुनाव जीत जाते हैं है तो उनके दोनों हाथों में लड्डू होंगे। एनडीए की  सरकार बनती है तो वो बीजेपी के साथ जाने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे और अगर खुदा न खास्ता इण्डिया ब्लाक की सरकार बनती है तो वो उनके साथ जाने भी कोई गुरेज नहीं करेंगे। क्योंकि पवन सिंह का लालू के परिवार से मधुर संबंध रहे हैं। यानि संभव है कि लोकसभा चुनाव के बाद पवन सिंह राजनैतिक जगत में भी स्टार राजनीतिज्ञ बनकर सबके सामने मौजूद हों। जबकि बाकी के तीन स्टारों रवि किशन, मनोज तिवारी और दिनेश लाल यादव निरहुआ का स्टार फीका पड़ता हुआ दिखाई दे।

 

 


शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली

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