
पहलगाम आतंकवादी हमले से लेकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की अभूतपूर्व कार्रवाई, उसके बाद 8 और 9 मई की रात्रि तक पाकिस्तान के साथ सीधे सैन्य टकराव और उसके बाद जिस तरह के वक्तव्य आए, प्रश्न उठाए गए हैं वे चिंतित करने वाले हैं।
इसमें सबसे अंतिम विवाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर के ऑपरेशन संबंधित पाकिस्तान को जानकारी देने के स्वाभाविक वक्तव्य का राहुल गांधी और कांग्रेस के द्वारा विवादास्पद बनाया जाना है।
राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा, ‘हमारे हमले की शुरु आत में पाकिस्तान को सूचित करना एक अपराध था। विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि भारत सरकार ने ऐसा किया। इसे किसने अधिकृत किया? इसके परिणामस्वरूप हमारी वायुसेना ने कितने विमान खो दिए?’ कांग्रेस मीडिया एवं कम्यूनिकेशन के प्रमुख जयराम रमेश पहले ही इससे आगे बढ़कर विदेश मंत्री के इस्तीफे की मांग कर चुके थे।
एक्स पर उनका पोस्ट था, ‘विदेश मंत्री-अपने अमेरिकी समकक्ष की ओर से किए जा रहे दावों का जवाब तक नहीं देते हैं, उन्होंने एक असाधारण रहस्योद्घाटन किया है। वह अपने पद पर कैसे बने रह सकते हैं, ये समझ से परे है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 19 जून, 2020 को चीन को सार्वजनिक रूप से क्लीन चिट दे दी और हमारी बातचीत की स्थिति खत्म कर दी। जिस शख्स को उन्होंने विदेश मंत्री के तौर पर नियुक्त किया, उसने इस बयान से भारत को धोखा दिया है।’
कांग्रेस के समर्थक और भाजपा विरोधियों के साथ अनेक आम लोगों को भी इन बड़े नेताओं के वक्तव्य के बाद लगा होगा कि क्या वाकई हमने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के पहले ही पाकिस्तान को बता दिया? इससे हास्यास्पद बात कुछ नहीं हो सकती कि जो सरकार आतंकवादी हमले के बाद सीमा पार स्थित महत्त्वपूर्ण आतंकवादी केंद्रों को ध्वस्त करने की साहसिक कार्रवाई की गोपनीय तैयारी कर चुकी हो वह पूर्व में दुश्मन को बता देगा? यह देश का दुर्भाग्य है और गहरी चिंता का विषय कि पूरे अभियान में, जिसने संपूर्ण दुनिया को विस्मित किया तथा पाकिस्तान को सकते में ला दिया उस पर उत्सव मनाने की जगह अपने पर ही प्रश्न उठाकर देश का मनोबल कमजोर करने की भूमिका निभाई जा रही है।
आखिर जयशंकर ने कहा क्या था? उन्होंने कहा था, ‘ऑपरेशन की शुरु आत में हमने पाकिस्तान को एक संदेश भेजा था कि हमारा निशाना आतंकवादी ढांचे पर है, न कि उनकी सेना पर। हमने उन्हें हस्तक्षेप न करने का विकल्प दिया था, लेकिन उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया।’ उनके अनुसार, 7 मई की रात 1 से 1:30 बजे के बीच, भारतीय सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने पाकिस्तान के डीजीएमओ मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला को फोन कर यह जानकारी दी थी। भारत ने केवल सावधानी से चुने गए आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया है, न कि सेना के ठिकानों को। इसमें कहां है कि पूर्व में ही सूचित कर दिया?
विदेश मंत्रालय के खंडन के बावजूद विवाद जारी है और रहने वाला है। सभी बड़े नेताओं को पता है कि सच क्या है। पहले की सरकारें ऐसा साहस नहीं कर सकी इसलिए प्रधानमंत्री मोदी सरकार जनता और दुनिया की नजर में ऐतिहासिक पराक्रमी न मान लिया जाए इसके भय से अनेक ऐसे विवाद खड़े किए जा रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि आगे भी ऐसे ही होता रहेगा। तभी तो जिस ऑपरेशन पर अब अमेरिका व यूरोप के सामरिक विशेषज्ञ भारत की रणनीतिक और कूटनीतिक सफलता ऐतिहासिक बताकर पाकिस्तान के झूठ को उजागर कर चुके हैं वहां हमारे ही देश में दुश्मनों विशेषकर चीन, पाकिस्तान और अन्य के नैरेटिव को फैलाकर पूरी सफलता के स्वाद में मिट्टी तेल डालने का उपक्रम हो रहा है।
भारत बहादुर देश है और जब 1:05 बजे रात से 1:30 बजे तक यानी 25 मिनट के अंदर दो दर्जन से ज्यादा मिसाइलों के सटीक निशाने से महत्त्वपूर्ण आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त करना शुरू किया तो पाकिस्तान को बता दिया कि कार्रवाई आतंकवाद के विरु द्ध है, पाकिस्तान पर हमला नहीं। पाकिस्तान नहीं कह रहा है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सूचना पहले मिल गई और हमने किसी मिसाइल को मार गिराया। वह सकते में आ गया कि इतनी बड़ी कार्रवाई की भनक कैसे नहीं लगी? दूसरे, यह हवाई बमबारी नहीं थी कि किसी वायुयान या पायलट को पाकिस्तान नुकसान पहुंचता। अगर नेताओं को इतनी समझ नहीं है तो उनके बारे में देश तय करे कि हमें कैसा व्यवहार करना है। अंतरराष्ट्रीय मानक है कि हम किसी देश की सीमा में घुसकर अपराध या आतंकवाद के विरु द्ध कार्रवाई करते हैं तो उसे सूचित करते हैं।
इसका रिकॉर्ड भी रखा जाता है ताकि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने हमले का झूठ न फैला सके। 10 मई को सैन्य टकराव रु कने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ट्वीट के बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला शुरू कर दिया यह जानते हुए कि मोदी सरकार खुद कई बार कर चुकी है कि जम्मू-कश्मीर के मामले में मध्यस्थता नहीं होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह अखंड प्रतिज्ञा है। यानी अगर आतंकवादी कार्रवाई हुई तो केवल आतंकवादियों के विरुद्ध नहीं, पाकिस्तान सरकार का काम मानकर उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
इससे स्पष्ट घोषणा और कुछ हो नहीं सकती। देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ नहीं हो सकता कि आतंकवाद के विरु द्ध संघर्ष में विश्व के लिए नये प्रतिमान को देश की उपलब्धि मानने की जगह संकुचित राजनीतिक स्वार्थ तथा रुग्ण वैचारिकता के आलोक में छोटा करने का आत्मघाती व्यवहार किया जा रहा है। जब पाकिस्तान को आईएफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कर्ज दे दिया तो जयराम रमेश ने पोस्ट कर दिया कि भारत ने मतदान में विरोध नहीं किया, जबकि उन्हें पता है कि विरोध में वोट करने का कोई प्रावधान नहीं और बहिर्गमन विरोध होता है जो भारत ने किया।
प्रश्न है कि क्या इसके बावजूद हमारे नेता, एक्टिविस्ट, बुद्धिजीवी, पत्रकारों का एक समूह अपने देश को छोटा करने से बाज आएंगे? युद्ध में क्षति एकपक्षीय नहीं होती। किंतु जब भारत स्वयं को युद्ध की अवस्था में मानता है तो जिम्मेवार भारतीय का राष्ट्रीय कर्तव्य ऐसे प्रश्नों से दूर रहना है। जो लोग अपना राष्ट्रीय कर्तव्य इसमें नहीं समझते उनके बारे में हम क्या शब्द प्रयोग करें या देश कैसा व्यवहार करें यह आप तय करिए।
(लेख में विचार निजी है)
अवधेश कुमार |
Tweet