
परमाणु बम की धमकी एवं गीदड़ भभकी देने वाले पाकिस्तान की हालत चार दिन की जंग के बाद ही खस्ता हो गई और जब भारत ने उसके तेरह में से ग्यारह एयरबेस क्षतिग्रस्त कर दिए और कम से कम छह पूरी तरह तबाह कर दिए व उसकी मिसाइलें एवं लड़ाकू विमान मार गिराए तथा ब्रह्मोस का प्रयोग करते हुए (यदि मीडिया की रिपोर्ट को सच मानें तो) उसे परमाणु बम के उपयोग करने की संभावना से भी वंचित कर दिया तब आनन फानन में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट करके दुनिया को इस संघर्ष विराम या सीजफायर की जानकारी दी तो एक तरह से दक्षिण एशिया एवं दुनिया ने राहत की सांस ली। वहीं यदि ट्रंप के वक्तव्य को मानें तो लाखों लोग मरने से बचे।
लेकिन यहीं से देश में राजनीतिक उठापटक शुरू हो गई। विपक्ष ने मुखर होकर पूछा कि ऐसे क्या कारण थे जिनकी वजह से अचानक ही संघर्ष विराम की घोषणा करनी पड़ी और विभिन्न कोणों से सरकार पर जब हमले हुए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 12 मई को देश को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर समाप्त नहीं हुआ है। अभी तो उसे केवल स्थगित किया गया है।
उन्होंने कड़े शब्दों में पाकिस्तान एवं आतंकवादियों सहित दूसरे देशों को भी चेतावनी दे दी कि भारत के आंतरिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप सहन नहीं किया जाएगा तथा आतंक की किसी भी घटना को ‘एक्ट ऑफ वॉर’ समझा जाएगा जिसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। भले ही सरकार एवं विभिन्न रक्षा विशेषज्ञों की दृष्टि में भारत का पलड़ा इस संघर्ष में भारी रहा तथा पाकिस्तान को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा लेकिन दुनिया में अपना पक्ष रखना भी बहुत जरूरी था। इसलिए भारत सरकार ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया जिनका नेतृत्व जाने-माने नेताओं को सौंपा गया। 59 सदस्यों वाले इन साथ प्रतिनिधिमंडलों में लगभग सभी प्रमुख दलों के सदस्यों को शामिल किया गया लेकिन विवाद तब उठ खड़ा हुआ जब कांग्रेस ने अपनी ही पार्टी के नेता शशि थरूर को अमेरिका जाने वाले प्रतिनिधिमंडल का नेता चुने जाने के बावजूद इस पर आपत्ति दर्ज कराई।
कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि जिन चार नेताओं के नाम कांग्रेस ने दिए थे उनमें से केवल आनंद शर्मा को ही प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया है, और सरकार में अपनी मर्जी से ही शशि थरूर एवं सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं को कांग्रेस का प्रतिनिधि बना कर भेजने का निर्णय लिया जो उसके लिए आपत्तिजनक है। एक तरह से देखें तो कांग्रेस का पक्ष अनुचित नहीं है क्योंकि हर दल को अपने उपयुक्त नेता को ऐसे प्रतिनिधिमंडलों में शामिल कराने का अधिकार है, लेकिन सरकार का कहना है कि उसने ऐसी कोई सूची मांगी ही नहीं थी तथा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए जिन नेताओं को उसने योग्य पाया उनका चयन इन प्रतिनिधिमंडलों में किया गया है।
इस दृष्टि से सरकार का पक्ष भी सही है क्योंकि जब राष्ट्र की बात आती है तब दल नहीं योग्यता प्रमुख हो जाती है। इसका उदाहरण स्वयं कांग्रेस की नरसिंह राव के नेतृत्व वाली सरकार ने उस समय दिया था जब 1994 में संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखने के लिए उसने अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल भेजा था तो कह सकते हैं कि ऐसी परंपरा की शुरु आत स्वयं कांग्रेस ने की थी।
वैसे ऐसा भी नहीं है कि पहली बार किसी सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल विदेश में भेजे हैं। इससे पूर्व भी ऐसे प्रतिनिधिमंडल भेजे जाते रहे हैं। 2008, 1971 एवं 1965 में भी सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों को भेजा गया था। जिस तरह भारत के सभी राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर पाकिस्तान की तरफ से खड़े किए गए संकट में साथ दिया वह प्रशंसनीय कदम था लेकिन संघर्ष विराम के बाद से ही जिस तरह की राजनीति की जा रही है, उससे इस बात का भी अंदेशा है कि सेना द्वारा लगभग जीती गई जंग की महत्ता को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कहीं महत्त्वहीन न कर दे। इसलिए सभी राजनीतिक दलों, चाहे सत्ता पक्ष के हों या विपक्ष के हों, को ध्यान देना होगा कि ऐसा परिदृश्य न प्रस्तुत करें कि दुनिया भर में भारत की जगहंसाई हो।
खैर, एक बार फिर से लौट कर चिंतन करते हैं कि इन प्रतिनिधिमंडलों के गठन का लक्ष्य क्या है तथा ये भारत के किस-किस पक्ष को दुनिया के सामने रखेंगे और पाकिस्तान के किन षड्यंत्रों एवं आतंकवादी मानसिकता को बेनकाब करेंगे। भारत सरकार के एजेंडे के अनुसार ये प्रतिनिधिमंडल विभिन्न देशों में जाकर उन परिस्थितियों के बारे में अवगत कराएंगे जिनके चलते भारत को पलट कर वार करना पड़ा तथा किस तरह पाकिस्तान अपने पाले हुए आतंकवादियों के माध्यम से भारत को निरंतर संकट में डालता रहा है। उनका एक बिंदु यह भी होगा कि यदि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष या अन्य देशों द्वारा अनावश्यक रूप से आर्थिक सहायता दी जाती है, तो यह देश इसका इस्तेमाल सभी शतरे एवं नियमों को अनदेखा करके हथियार खरीदने एवं आतंकवादियों को शह देने के लिए करेगा। बेशक, विपक्ष का काम है सरकार की कमियों को उजागर करना पर सबसे मुख्य बात है कि क्षणिक आवेश या निहित स्वार्थ के चलते भारत के हितों की अनदेखी न होने पाए।
डॉ. घनश्याम बादल |
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