मुद्दा : सत्ता व नैतिकता में विरोधाभास क्यों

June 3, 2025

महात्मा गांधी जी ने कहा था कि सिद्धांतों के बिना राजनीति पाप है। इसके अलावा प्रसिद्ध विचारक हेनरी एडम ने कहा है कि ‘मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनैतिक शिक्षा का आदि और अंत है’ भारतीय राजनीति का उद्भव प्राचीन काल से हुआ है, किंतु इसकी प्रकृति में परिवर्तन तब आया जब भारत विश्व स्तर पर एक आधुनिक राज्य के रूप में स्थापित हुआ।

भारतीय राजनीति में स्वतंत्रता के पूर्व नैतिकता एवं संस्कृति की एकता के दम पर स्वतंत्रता संग्राम पर विजय प्राप्त की थी। विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल, लाला लाजपत राय और न जाने कितने महान लोगों ने ब्रितानी हुकूमत को देश से भगाया था। 

देश का स्वतंत्रता संग्राम जनप्रतिनिधियों को नैतिकता के पालन के लिए प्रोत्साहित करता रहा है। जब भारत में स्वतंत्र लोकतांत्रिक राजनीति का आरंभ हुआ तो नैतिकता का क्षरण आरंभ हो गया। राजनीति धीरे-धीरे सिद्धांत से विमुख होती गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात यह माना जाता रहा है कि राजनीति में अनैतिकता के पनपने के दो प्रमुख कारण माने गए धनबल और बाहुबल। राजनीति में ऐसा कहा जाता है कि जिसके पास धन होता है उसके पास बल भी होता है, और भारतीय राजनीति में और कई प्रदेशों के संदर्भ में यह बात सर्वथा उचित प्रतीत होती है। भारतीय राजनीति में धनबल और बाहुबल का नकारात्मक प्रभाव नैतिकता के पतन के रूप में सामने आया है।

स्वतंत्रता के पश्चात राजनेताओं में स्वयं के लिए धन एकत्र करना एवं येन-केन-प्रकारेण सत्ता स्थापित करने के प्रयास के कारण नैतिकता धीरे-धीरे स्खलित होती गई है। नेताओं का बेईमानी और भ्रष्ट कार्य में लिप्त होना भी राजनीति में नैतिकता के पतन का प्रमुख कारण है और यही कारण है कि आज अधिकतर राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते हैं। सर्वविदित है कि सार्वजनिक संपत्ति को अपनी स्वयं की संपत्ति बनाने की होड़ में राजनेताओं को कर्तव्य पथ से विमुख होते देखा गया है। राजनीति में राजनेताओं ने इसे संपत्ति कमाने का जरिया ही मान लिया है। सार्वजनिक संसाधनों का पूरा नियंत्रण राजनेताओं के पास होता है। इसका उपयोग वे अपने संसदीय, विधानसभा क्षेत्र के लिए करते हैं। राजनीति में भाई-भतीजावाद सामान्य लक्षण है। कोई भी राजनेता आज यह चाहता है कि योग्यता हो ना हो; बड़ा पद उसके भाई, भतीजे ,पत्नी, बेटे आदि को मिल जाए।

इतना ही नहीं कई बार सगे-संबंधियों के अपराधी होते हुए भी राजनीतिक पद अथवा चुनावी टिकट दिलाने का प्रयास करते हैं। भारतीय राजनीति में क्रोनी कैपिटिलज्म ठीक तरीके से पैर जमा चुका है। इसमें उद्योगपति राजनीतिक चंदा का हवाला देते हुए राजनेताओं से देश की नीतियों को अपने पक्ष में करवा लेते हैं और इस तरह जनता का शोषण शुरू हो जाता है। भारतीय राजनीति में इस तरह के आरोप लंबे समय से लगते आ रहे हैं। राजनीति में उच्च नैतिक मूल्यों का महत्त्व घटने के साथ-साथ राजनीतिक मापदंड शासन को राजनीति आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में नकारात्मक रूप से प्रभावित करता जा रहा है। राजनेताओं से अपेक्षा होती है कि वह समाज के प्रति प्रतिबद्ध होकर काम करें किंतु अनैतिक राजनीति इस प्रतिबद्धता में एक बड़ी बाधा है, और इसके साथ ही राजनेता अनैतिक प्रथाओं का समावेश कर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने में कतई गुरेज नहीं करते हैं।

इतना ही नहीं राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप की भाषा भी निम्न स्तर तथा अनैतिक होते जा रही है, और यही कारण है कि राजनीति में अयोग्य लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। विडंबना यह है कि भारत में प्रत्येक पेशेवर व्यक्ति के लिए कार्य करने के लिए योग्यता निर्धारित की गई है, किंतु जनता पर शासन करने वाले जनप्रतिनिधियों की कोई भी योग्यता निर्धारित नहीं की गई है। संविधान में ही योग्यता निर्धारित नहीं है, लेकिन संसद द्वारा पारित जनप्रतिनिधि अधिनियम 1991 में भी इसका कोई प्रावधान नहीं किया गया। इसीलिए संविधान तथा इस अधिनियम में जनप्रतिनिधियों की शैक्षणिक योग्यता एवं अपराधिक निर्योग्यता का प्रावधान किया जाना चाहिए, जिससे राजनीति थोड़ी साफ-सुथरी हो और नैतिकता तथा आत्मबल में वृद्धि हो। पढ़े लिखे, शिक्षित लोगों की राजनीति में आने से वहां का वातावरण थोड़ा शुद्ध होने की संभावना बनती है और देश के विकास को भी बल मिलता है। 

यह बात महत्त्वपूर्ण है कि सामान्यता अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को विधानसभा या लोक सभा में टिकट नहीं दी जानी चाहिए। प्राय: देखा गया है कि अनैतिकता की शुरु आत अधिक धन के संचालित होती है। इसीलिए सभी राजनीतिक दलों के प्राप्त चंदे को ऑडिट के दायरे में लाया जाना चाहिए। सदनों की नियमावली में परिवर्तन करते हुए सूचना के अधिकार के अंतर्गत जिसमें पार्टयिों की गतिविधियां भी आरटीआई के दायरे में लाई जा सके। हाल ही में संसद की निष्पादन क्षमता में भारी कमी आई है, क्योंकि प्रत्येक राजनीतिक दल संसद का प्रयोग राजनीतिक लाभ के लिए करने लगे हैं, इसीलिए नियमावली में परिवर्तन के साथ इस पर लगाम लगाई जानी चाहिए। इससे राजनीति में नैतिकता का क्षरण ना हो।


संजीव ठाकुर

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