
प्रत्येक वर्ष जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यह दिवस 1972 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा शुरू किया गया था और आज 150 से अधिक देशों में मनाया जाता है।
इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना दिलाना है। वर्ष 2025 की थीम है ‘पृथ्वी के साथ शांति बनाएं’ (मेक पीस विद नेचर), जो बताती है कि अब प्रकृति के साथ संतुलन बनाना विकल्प नहीं, बल्कि अस्तित्व की अनिवार्यता है।
आज दुनिया और भारत एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहे हैं। तेजी से होते शहरीकरण, औद्योगीकरण और अत्यधिक उपभोग ने पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ दिया है। जलवायु परिवर्तन अब केवल भविष्य की आशंका नहीं, वर्तमान की सच्चाई बन चुका है। वर्ष 2024 में भारत में रिकॉर्ड 294 हीटवेव की घटनाएं दर्ज की गई। राजस्थान के फालोदी में तापमान 51 डिग्री पहुंच गया जो अब तक का सबसे अधिक है। महाराष्ट्र, बिहार और मध्य भारत के कई हिस्सों में बाढ़ और सूखा एक साथ देखने को मिला। यह जलवायु असंतुलन का स्पष्ट संकेत है। वायु प्रदूषण भी एक विकराल समस्या है। IQAir की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। दिल्ली, कानपुर और गाजियाबाद में वायु गुणवत्ता सूचकांक अक्सर 300 से ऊपर रहता है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में हर साल 12 लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण असमय मृत्यु का शिकार हो रहे हैं।
जल संकट भी गहराता जा रहा है। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि भारत के 21 बड़े शहरों में 2030 तक भूजल समाप्त हो सकता है। चेन्नई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों में गर्मिंयों के दौरान टैंकरों के भरोसे पानी की आपूर्ति हो रही है। लगभग 60 करोड़ भारतीय मध्यम से गंभीर जल संकट झेल रहे हैं। वनों की कटाई और जैव विविधता की हानि भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुकी है। एफएओ के मुताबिक, 2010-2024 के बीच दुनिया भर में औसतन हर साल 1.1 करोड़ हेक्टेयर वन भूमि नष्ट हुई। भारत में विकास परियोजनाओं, खनन और अवैध कटाई के कारण अरावली, झारखंड और पश्चिमी घाट के जंगलों में वृक्षों की संख्या तेजी से घटी है।
इससे न केवल कार्बन अवशोषण घटता है, बल्कि वन्य जीवन भी संकट में आ गया है। हालांकि इन समस्याओं के बीच कुछ प्रेरक प्रयास भी हुए हैं। इंदौर, जिसने लगातार 7वीं बार भारत का सबसे स्वच्छ शहर बनने का गौरव प्राप्त किया है, अब पूरी तरह जीरो वेस्ट सिटी बनने की ओर अग्रसर है। वहां 100% कचरे का पृथक्करण होता है, और वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट से प्रति दिन 20 मेगावॉट बिजली का उत्पादन हो रहा है। इससे 50,000 घरों को बिजली मिल रही है। केरल का कोच्चि शहर, जहां ‘हरित कोच्चि’ अभियान के अंतर्गत 1.5 लाख पौधे लगाए गए, अब तापमान में औसतन 1.8 डिग्री की कमी और जैव विविधता में 22% वृद्धि देख रहा है। यह परियोजना पूरी तरह से नागरिकों की भागीदारी से चलाई गई, जिससे सामुदायिक चेतना भी बढ़ी।
उत्तराखंड के फुलवारी गांव की कहानी भी प्रेरक है। वहां के किसानों ने जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाया। रासायनिक उर्वरकों से दूरी बना कर उन्होंने परंपरागत बीज और गोबर खाद का उपयोग शुरू किया। इससे फसल की गुणवत्ता सुधरी, मिट्टी की उर्वरता बढ़ी और किसानों की आय में 22% की वृद्धि हुई। दिल्ली सरकार ने 2023 में ट्री ट्रांसप्लांटेशन नीति लागू की जिसके अंतर्गत सड़क या परियोजना के कारण हटाए गए पेड़ों को दूसरी जगह स्थानांतरित किया गया। इनमें से 70% से अधिक पेड़ जीवित रहे, जो उल्लेखनीय सफलता है। सरकार और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की ओर से भी कई पहलें की जा रही हैं। मिशन LiFE (लाइफस्टाइल फॉर एन्वायरन्मेंट) के तहत लोगों को पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है जैसे साइकिल चलाना, बिजली-पानी की बचत, और दोबारा उपयोग।
राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत भारत ने 2025 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जिसमें भारत अग्रणी देशों में शामिल है। नमामि गंगे योजना, स्वच्छ भारत मिशन, और हरित भारत मिशन जैसे अभियान भी निरंतर चल रहे हैं। फिर भी, प्लास्टिक प्रदूषण जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं। भारत हर साल लगभग 35 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है, जिसमें से 60% का ही पुनर्चकण्रहोता है। यह कचरा नदियों, समुद्र और खेतों को प्रदूषित कर रहा है। कई क्षेत्रीय कानूनों के बावजूद प्लास्टिक बैग और थर्मोकोल का खुलेआम उपयोग भी जारी है।
विश्व पर्यावरण दिवस केवल एक रस्म नहीं, बल्कि वैिक चेतावनी है। यह हमें याद दिलाता है कि हमने अभी से कदम नहीं उठाए तो अगली पीढ़ियों को शुद्ध हवा, पानी और हरियाली केवल चित्रों और किताबों में ही मिलेंगी। पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार या स्वयसेवी संथाओं की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक समुदाय को अपनी जिम्मेदारी लेनी होगी। हमें अपने जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाने होंगे। जैसे पेड़ लगाना, ऊर्जा की बचत करना, कचरे का पृथक्करण और टिकाऊ उत्पादों का उपयोग। यही छोटे कदम मिल कर पृथ्वी को बचाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। क्लाइमेट चेंज की वजह से ऋतु प्रभावित हुई हैं। मानसून का आकलन कठिन हो जा रहा है। आपदाएं की घटनाएं बढ़ रही हैं। आंधी, तूफान, बाढ़ बारिश बेढंगे हुए जा रहे हैं।
भूकंप पहले कभी-कभी सुना जाता था। आज अक्सर धरती हिल जाती है, हिट वेव और तापमान बढ़ना अपने आप में चौंकाने वाला है। एक तरफ अपार्टमेंट और सड़कों का जाल तो दिखता है लेकिन इसके पीछे ताल, पोखरे, पेड़ सब सूने होते जा रहे हैं। निश्चित रूप से आर्गेनिक फार्मिग, अमृत योजना के तहत ताल, पोखरों के संरक्षण को अभियान बनाना होगा। युवाओं और बच्चों को विशेष रूप से इनसे जोड़ना होगा। पंचायतों और नगर निकायों की जवाबदेही तय करनी होगी। शिक्षण संस्थाओं को भी आगे आना होगा। हम अपनी जिम्मेदारी सफलतापूर्वक नहीं निभा पाए तो समझिए अगली पीढ़ी के साथ पर्यावरण को लेकर के न्याय नहीं कर रहे हैं। ‘अगर पृथ्वी हरी रहेगी, तो भविष्य हमारी मुट्ठी में होगा। पर्यावरण की रक्षा, मानवता की रक्षा है।’
(लेख में विचार निजी हैं)
राजेश मणि |
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