विज्ञापन जगत ने आम जनता के मन में एक बात बिठा दी है कि अंडे शाकाहारी नहीं हैं। अंडे का उपयोग बढ़ाने के लिए इसे प्रोटीन का बढ़िया स्रेत बताया जाता है।
प्रोटीन की मात्रा बहुत सारी शाकाहारी चीजों में भी काफी ज्यादा है पर इस विवाद में नहीं भी पड़ा जाए तो यह तथ्यात्मक रूप से गलत है कि अंडा शाकाहारी है। इसलिए शाकाहारियों के लिए अंडे को लोकप्रिय बनाने के लिए किए जाने वाले प्रचार का उल्टा नारा लगाया जा सकता है - ‘संडे हो या मंडे, कभी न खाओ अंडे’। कोई क्या खाए और क्या नहीं इसमें बहुत कुछ आदमी की अपनी पसंद और जीवनशैली के साथ-साथ कई अन्य बातों पर निर्भर करता है। फिर भी आप जो चीज खाते हैं या किसी कारण से नहीं खाते हैं उसके बारे में आपको आवश्यक जानकारी अवश्य होनी चाहिए।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 100 ग्राम अंडों में जहां 13 ग्राम प्रोटीन होगा, वहीं पनीर में 24 ग्राम, मूंगफली में 31 ग्राम, दूध से बने कई पदाथरे में तो इससे भी अधिक एवं सोयाबीन में 53 ग्राम प्रोटीन होता है। यही तथ्य कैलोरी के बारे में है। जहां 100 ग्राम अंडों में 173 कैलोरी, मछली में 93 कैलोरी व मुर्गे के गोश्त में 194 कैलोरी प्राप्त होती है, वहीं गेहूं व दालों में 300 कैलोरी, सोयाबीन में 350 कैलोरी व मूंगफली में 550 कैलोरी और मक्खन निकले दूध एवं पनीर से लगभग 350 कैलोरी प्राप्त होती है तो हम यह निर्णय ले सकते हैं कि स्वास्थ्य के लिए क्या चीज जरूरी है? यह स्पष्ट करना भी उचित रहेगा कि अधिक कोलेस्ट्रोल शरीर के लिए लाभदायक नहीं है।
100 ग्राम अंडों में कोलेस्ट्रोल की मात्रा 500 मिलीग्राम है और मुर्गी के गोश्त में 60 है तो वही कोलेस्ट्रोल सभी प्रकार के अन्न, फलों, सब्जियों आदि में शून्य है। अमेरीका के विविख्यात विशेषज्ञ डॉ. माइकेल कलेपर का कहना है कि अंडे का पीला भाग विश्व में कोलेस्ट्रोल एवं जमी चिकनाई का सबसे बड़ा स्रेत है जो स्वास्थ्य के लिए घातक है। उन्होंने यह भी साबित किया है कि जो व्यक्ति मांस या अंडे खाते हैं उनके शरीर में ‘रिस्पटरों’ की संख्या में कमी हो जाती है जिससे रक्त के अन्दर कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक हो जाती है। इससे हृदय रोग शुरू हो जाता है और गुर्दे के रोग एवं पथरी जैसी बीमारियों को भी बढ़ावा मिलता है। वास्तविकता यह है कि 1962 में यूनीसेफ ने एक पुस्तक प्रकाशित की तथा अंडों को लोकप्रिय बनाने के लिए अनिषेचित (इनफर्टाइल) अंडों को शाकाहारी अंडे (वेजीटेरियन) जैसा मिथ्या नाम देकर भारत के शाकाहारी समाज में भ्रम फैला दिया।
1971 में मिशिगन यूनीर्वसटिी (अमेरिका) के वैज्ञानिक डॉ. फिलिप जे. स्केन्ट ने यह सिद्ध किया कि: अनिषेचित अंडे किसी भी प्रकार से शाकाहारी नहीं होते क्योंकि वे न तो पेड़ों पर उगते हैं और न किसी पौधे पर बल्कि वे सब मुर्गी के पेट में से ही उत्पन्न होते हैं। एक वैज्ञानिक प्रयोग के आधार पर यह देखा गया है कि विद्युत धारा के द्वारा अंडों को आंका जा सकता है। अनिषेचित अंडे में निषेचित अंडे की भांति ही यह विद्युत धारा होती है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि निर्जीव वस्तु में कभी भी विद्युत धारा का अंकन नहीं किया जा सकता। विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि किसी भी प्राणी के जीवन का आधार मात्र लैंगिक प्रजनन क्रिया ही नहीं है बल्कि अलैंगिक प्रजनन के द्वारा भी जीवन हो सकता है जैसे अमीबा और अनेक एककोशीय प्राणी बिना निषेचन क्रिया के उत्पन्न होते रहते हैं। इसी प्रकार से ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ या उसके द्वारा उत्पन्न प्राणी निर्जीव नहीं गिने जा सकते।
सच्चाई यह है कि अंडे दो प्रकार के होते हैं एक वे जिनसे बच्चे निकल सकते हैं तथा दूसरे वे जिनसे बच्चे नहीं निकलते। मुर्गी यदि मुर्गे के संसर्ग में न आए तो भी जवानी में अंडे दे सकती है। इन अंडों की तुलना स्त्री के रज:स्रव से की जा सकती है। जिस प्रकार स्त्री के मासिक धर्म होता है। उसी तरह मुर्गी के भी यह धर्म अंडों के रूप में होता है। यह अंडा मुर्गी की आंतरिक गंदगी का परिणाम है। मुर्गियां जो अंडे देती हैं वे सब अपनी स्वेच्छा से या स्वभावतया नहीं देतीं! बल्कि उन्हें विशिष्ट हार्मोन्स और एग-फर्मयुलेशन के इंजेक्शन दिए जाते हैं। इन इंजेक्शनों के कारण ही मुर्गियां लगातार अंडे दे पाती हैं। अंडे के बाहर आते ही उसे इन्क्यूबेटर (सेटर) में डाल दिया जाता है ताकि उसमें से 21 दिन की जगह 18 दिनों में ही चूजा बाहर आ जाए।
मुर्गी का बच्चा जैसे ही अंडे से बाहर निकलता है नर तथा मादा बच्चों को अलग-अलग कर लिया जाता है। मादा बच्चों को शीघ्र जवान करने के लिए एक खास प्रकार की खुराक दी जाती है और इन्हें चैबीसों घंटे तेज प्रकाश में रखकर सोने नहीं दिया जाता ताकि ये दिन रात खा-खा कर जल्दी ही रज:स्रव करने लगें और अंडा देने लायक हो जाएं। अब इन्हें जमीन की जगह तंग पिंजरों में रख दिया जाता है। इन पिंजरों में इतनी अधिक मुर्गियां भर दी जाती हैं कि वे पंख भी नहीं फड़फड़ा सकतीं। तंग जगह के कारण आपस में चोंचें मारती हैं, जख्मी होती हैं, गुस्सा करती हैं व कष्ट भोगती हैं। जब मुर्गी अंडा देती है तो अंडा जाली में से किनारे पड़कर अलग हो जाता है और उसे अपनी अंडे सेने की प्राकृतिक भावना से वंचित रखा जाता है ताकि वह अगला अंडा जल्दी दे। जिंदगी भर पिंजरे में कैद रहने व चल फिर न सकने के कारण उसकी टांगे बेकार हो जाती हैं। जब उसकी उपयोगिता घट जाती है, तो उसे कत्लखाने भेज दिया जाता है। इस प्रकार से प्राप्त अंडे अहिंसक व शाकाहारी कैसे हो सकते हैं?
रजनीश कपूर |
Tweet