बेरोजगारी का मुद्दा 2014 से ही, जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार केंद्र में सत्तासीन हुई, नासूर बनता रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढ़ने के बावजूद बेरोजगारी को लेकर विपक्षी दल भी लगातार हमलावर रहे हैं, और सरकार अक्सर बचाव की मुद्रा में खड़ी नजर आई है। सरकार का दावा है कि स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसी उसकी नीतियों और कार्यक्रमों या अंतरिक्ष और रक्षा सेक्टरों में सुधार के केंद्र में महिलाओं समेत देश की युवा आबादी है पर सरकारी आंकड़े ही उसके दावों की पोल खोलते नजर आते हैं। नवम्बर के आखिर में लोक सभा में एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने बताया कि वित्त वर्ष 2013-24 में भारत में 15-29 वर्ष के युवाओं के बीच बेरोजगारी दर 10.2 फीसद थी।
विडंबना यह है कि एक तरफ जहां देश में बेरोजगारी की दर चिंताजनक है, वहीं केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों में लाखों रिक्तियां खाली पड़ी हैं, जिन्हें भरा नहीं जा रहा है। इनमें इसरो, रेलवे, गृह मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालय और विभाग भी शामिल हैं। सुरक्षा ढांचा और इससे जुड़े बलों में बड़े स्तर पर पदों को न भरे जाने की वजह से पिछले दिनों संसद की सुरक्षा में सेंध लगने की भी खबरें आई। बेरोजगारी की समस्या के इतने गंभीर होने के बावजूद रिक्तियों को भरने की जगह बड़ी संख्या में सरकारी विभागों में निम्न श्रेणी में संविदा पर कर्मचारियों जबकि वरिष्ठ पदों पर सलाहकारों की भर्ती से काम चलाया जाता है।
सरकार बेशक, दावा करती रही है कि पदों का रिक्त होना और उन्हें भरा जाना निरंतर प्रक्रिया रही है, और उनके विवरण संबंधित मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी), स्टाफ सेलेक्शन कमीशन (एसएससी), रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड (आरआरबी), इंस्टीच्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सेलेक्शन (आईबीपीएस) आदि जैसी संबंधित रिक्रूटमेंट एजेंसियों के पास होते हैं। सरकार समय-समय पर और समयबद्ध तरीके से मिशन मोड में उन्हें भरने के लिए मंत्रालयों और विभागों को निर्देश देती रहती है, और इसी क्रम में उन्हें भरने के लिए रोजगार मेलों का देश के अलग-अलग राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में आयोजन करती रहती है।
हाल में आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश के लगभग 80 विभागों में लगभग 10 लाख से अधिक पद रिक्त हैं। इनमें इसरो, रेलवे, गृह मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालय और विभाग शामिल हैं। गौरतलब है कि भारत विविध प्रकार के श्रम बलों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्याओं में से एक है, पर बेरोजगारी दर भारतीय अर्थव्यवस्था को व्यय, आर्थिक वृद्धि, रोजगार के अवसरों आदि में कमी जैसे कई प्रकार से प्रभावित करती रही है। जाहिर है कि अगर बेरोजगारी दर अधिक है, तो इससे आर्थिक प्रगति में बाधा पहुंचती है, और इसकी वजह से सामाजिक अशांति भी फैल सकती है जबकि अगर बेरोजगारी दर कम है, तो इससे उन्नतिशील रोजगार बाजार और बढ़ती अर्थव्यवस्था का संकेत मिलता है।
देश के नीति-निर्धारकों का फोकस रोजगार सृजन और आर्थिक प्रगति के लिए रणनीतियां बनाने पर रहता तो है पर उसके ज्यादा सार्थक परिणाम निकलते दिखाई नहीं दे रहे। उदाहरण के तौर पर स्वास्थ्य क्षेत्र में आवश्यक पदों पर रिक्तियों की कमी तत्काल और विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल से लोगों को वंचित रखती है। सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लगभग 50 प्रतिशत रिक्त रहने का अनुमान है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह कमी और भी अधिक है, जहां 80 प्रतिशत तक पद रिक्त पड़े हैं। यही वजह है कि हमारी ग्रामीण आबादी को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दूर तक बड़े शहरों का रुख करना पड़ता है। राज्य सभा में रेल मंत्री अिनी वैष्णव द्वारा दिए गए एक उत्तर के अनुसार, भारतीय रेल में 2.5 लाख से भी अधिक पद खाली पड़े हैं। जाहिर है कि इतने सारे पदों के रिक्त रहने से सुविधाएं भी प्राप्त नहीं होतीं और यात्रियों की सुरक्षा भी हमेशा सांसत में बनी रहती है। देश के विभिन्न न्यायालयों में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं जबकि न्यायाधीशों के हजारों पद रिक्त हैं। यही वजह है कि मामलों के निपटान में सालों लग जाते हैं। गृह मंत्रालय में सीआरपीएफ, बीएसएफ और दिल्ली पुलिस सहित विभिन्न संगठनों में लाख से अधिक पद रिक्त बताए जाते हैं। ये रिक्तियां हजारों की संख्या में ए, बी और सी जैसे विभिन्न ग्रुपों में हैं।
त्रासदी यह है कि जहां देश के युवाओं में सरकारी नौकरियां पाने की मारामारी है, लगभग सभी सरकारी विभागों में बड़े पैमाने पर पद खाली पड़े हुए हैं, जिससे देश की दक्षता और कुशलता प्रभावित हो रही है। देश में नौकरी न मिलने के कारण युवा इस्रइल और दूसरे युद्ध प्रभावित देशों में रोजगार के लिए जाने और अपनी जान को दांव पर लगाने के लिए मजबूर हैं। सरकार की कोशिश कृषि के आधुनिकीकरण, ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास तथा ग्रामीण उद्योगों के लिए कौशल प्रशिक्षण जैसी ग्रामीण विकास संबंधी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने के द्वारा इन क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाओं में वृद्धि करने की है। सरकारी व्यय में वृद्धि, निजी निवेश को बढ़ाने, निजी-सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) को प्रोत्साहित करने, व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा देने, शिक्षा और कौशल में बढ़ोतरी करने, खुद की व्यावसायिक क्षमता विकसित करने और प्रौद्योगिकी विकास पर फोकस करने के जरिए भी बेरोजगारी को कम किया जा सकता है।
पदों के व्यापक स्तर पर रिक्त रहने के कारण सरकार के मंत्रालयों और दूसरे विभागों में वर्तमान कर्मचारियों के पास पहले से ही इतने अतिरिक्त काम हैं कि उनसे दक्षता की उम्मीद करना बेमानी है। पद रिक्त न रहें, इसके लिए भर्ती प्रक्रिया को युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता है ताकि तत्काल कार्रवाई करते हुए पदों के रिक्त होते ही उन्हें भरा जा सके।
(लेख में विचार निजी हैं)
शशि झा |
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