वकील, कन्नड़ लेखिका, नारीवादी और अब बुकर विजेता बनी बानू मुश्ताक

May 22, 2025

कन्नड़ लघु कथा संग्रह ‘हृदय दीप’ (हार्ट लैंप) के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका बानू मुश्ताक ने अपनी कहानियों में अपने आसपास की महिलाओं के जीवन और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ उनकी लड़ाई को गहराई से चित्रित किया है।

वकील, नारीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता बानू मुश्ताक को जब अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिया गया तो वह साहित्य जगत में सुर्खियां बन गईं।

मुश्ताक ने मंगलवार रात ‘टेट मॉडर्न’ में एक समारोह में अपनी इस रचना की अनुवादक दीपा भास्ती के साथ पुरस्कार प्राप्त किया। मुश्ताक ने अपनी इस जीत को विविधता की जीत बताया है। मुश्ताक का यह लघु कथा संग्रह अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार हासिल करने वाला पहला कन्नड़ लघु कथा संग्रह बन गया। मुश्ताक की 12 लघु कहानियों का संग्रह दक्षिण भारत के पितृसत्तात्मक समुदायों में महिलाओं और लड़कियों के रोजमर्रा के जीवन का वृत्तांत प्रस्तुत करता है। ‘हार्ट लैंप’ यह पुरस्कार प्राप्त करने वाला पहला लघु कथा संग्रह भी है। इसमें 77 वर्षीय मुश्ताक की 1990 से लेकर 2023 तक 30 साल से अधिक समय में लिखी कहानियां हैं। मुश्ताक की किताबों में पारिवारिक और सामुदायिक तनावों का चितण्रकिया गया है और उनके लेख ‘महिलाओं के अधिकारों के लिए उनके अथक प्रयासों और सभी प्रकार के जातिगत और धार्मिक उत्पीड़न का विरोध करने के उनके प्रयासों की गवाही देते हैं’।

कर्नाटक के हासन में रहने वाली महिला अधिकार कार्यकर्ता बानू जाति और वर्ग व्यवस्था की आलोचना करने वाले बंदया साहित्यिक आंदोलन के दौरान प्रमुखता से उभरीं। हासन में जन्मी बानू मुश्ताक ने कानून की डिग्री लेने से पहले कुछ समय तक लंकेश पत्रिका के साथ पत्रकार के रूप में भी काम किया था। उनके पिता एक वरिष्ठ स्वास्थ्य निरीक्षक थे और उनकी मां एक गृहिणी थीं। वह अभी भी वकालत कर रही हैं और हासन में उनके घर से उनकी टीम उनके साथ काम करती है और वह नियमित रूप से अदालत जाती हैं।

अपनी पुस्तक को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए ‘शॉर्टलिस्ट’ किए जाने के बाद उन्होंने कहा था, मैं इसके बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोचती हूं, लेकिन मुझे पता है कि मैं एक मुस्लिम महिला हूं और इस पहचान के तहत कैसे काम करना है.. मेरे माता-पिता उदार और शिक्षित थे। मेरे पिता चाहते थे कि उनके सभी बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करें। मेरे पति भी बहुत मिलनसार हैं। मेरा परिवार हम पर कुछ भी नहीं थोपता। उन्होंने बताया, उन्होंने सात या आठ साल की उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा, मेरे पिता मेरे लिए बहुत सारी किताबें लाते थे.. पंचतंत्र, चंदामामा। मैं पढ़ने में बहुत तेज थी। मैं उन्हें पढ़ती और सब कुछ मिलाकर कहानियां बनाती और अपने पिता को सुनाती। 

छह लघु कहानी संग्रह, एक उपन्यास, एक निबंध संग्रह और एक कविता संग्रह की लेखिका मुश्ताक केवल कन्नड़ में लिखती हैं और उन्होंने अपने साहित्यिक कार्य के लिए कर्नाटक साहित्य अकादमी और दानांिचतामणि अत्तिमब्बे पुरस्कार समेत प्रमुख पुरस्कार हासिल किये हैं। उनकी एक कहानी, ‘हसीना’ को 2004 में निर्देशक गिरीश कासरवल्ली ने सिनेमा के लिए रूपांतरित किया और उसे कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। एक साक्षात्कार में लेखिका ने कहा था कि ‘कर्नाटक की सामाजिक परिस्थितियों’ ने उनकी छवि को आकार दिया। उन्होंने कहा, 1970 का दशक कर्नाटक में आंदोलनों का दशक था-दलित आंदोलन, किसान आंदोलन, भाषा आंदोलन, महिला संघषर्, पर्यावरण सक्रियता और रंगमंच, और ऐसी अन्य गतिविधियों ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला। हाशिए पर पड़े समुदायों, महिलाओं और उपेक्षितों लोगों के जीवन के साथ-साथ उनकी अभिव्यक्तियों से मेरा सीधा जुड़ाव मुझे लिखने की ताकत देता रहा है।

लंदन के टेट मॉडर्न में मंगलवार रात को आयोजित भव्य पुरस्कार समारोह के बाद बानू मुश्ताक ने कहा, इस किताब का सृजन इस विश्वास से हुआ कि कोई भी कहानी कभी छोटी नहीं होती, मानवीय अनुभव के ताने-बाने में रेशा-रेशा पूरी अहमियत रखता है। उन्होंने कहा, ऐसी दुनिया में जो अक्सर हमें विभाजित करने की कोशिश करती है, साहित्य उन खोई हुई पवित्र जगहों में से एक है जहां हम एक-दूसरे के मन में रह सकते हैं, भले ही कुछ पृष्ठों के लिए ही क्यों न हो। उनके पति मुश्ताक मोइनुद्दीन और बेटे ताहिर मुश्ताक बानू मुश्ताक को यह सम्मान मिलने पर बहुत खुश हैं। उनके पति ने कहा, हम इस खबर से बहुत खुश हैं। इसने भारत और कर्नाटक को गौरव दिलाया है। यह केवल हमारे लिए पुरस्कार नहीं है, यह व्यक्तिगत नहीं है, यह पूरे कर्नाटक के लिए बहुत खुशी की बात है। उनके बेटे ताहिर ने कहा, यह हम सभी के लिए बहुत ही रोमांचक, महत्वपूर्ण और खुशी की घटना है, न केवल हमारे परिवार के लिए बल्कि सभी कन्नड़ लोगों के लिए.हम बहुत खुश हैं कि एक कन्नड़ रचना ने दुनियाभर के पाठकों को प्रभावित किया और उनका दिल जीता।


भाषा
नई दिल्ली

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