
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से लेकर मध्य प्रदेश का गुना और इसके पहले नागपुर, मलाड आदि की घटनाओं में लगातार दिख रहे यथार्थ को पहचान कर उसके अनुरूप व्यवहार तय करने का समय है।
मुर्शिदाबाद से भागीरथी नदी में नाव पर बैठ कर पलायन करते और फिर मालदा जिले में उतरते लोगों की तस्वीरें किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अंदर से हिला देंगी।
मालदा के पारलालपुर हाई स्कूल में शरण लिए लगभग 500 लोगों की तस्वीरें एवं वक्तव्य देश के सामने हैं। इनमें तीन दिन के नवजात से लेकर महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे शामिल हैं। पलायन कर गए लोग मुर्शिदाबाद के धुलियान के हैं। वे बता रहे हैं कि घरों में आग लगा दी गई, मारपीट की गई, अब न घर रहा, न खाने को राशन बचा। जो कुछ था, वे सब लूट कर ले गए। धुलियान में एक गरीब पिता-पुत्र की हत्या कर दी गई जो हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते थे। लोग कह रहे हैं कि उनकी पानी की टंकी में जहर मिला दिया गया। इसमें कितनी सच्चाई है। अभी तक तो ममता बनर्जी सरकार को टंकियां जांच करके बता देना चाहिए था। नहीं बताने का मतलब? कई तालाबों में मछलियों सहित अन्य जीव मरे पाए गए यानी हमलावर घोषणा कर रहे थे कि सारे पानी में जहर मिला देंगे तो संभवत: उन्होंने तालाब में ऐसा किया। टीवी कैमरों के माध्यम से देश ने वहां की हिंसा देखी।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भी अलग-अलग क्षेत्र में हिंसा हो रही है। शमशेरगंज सहित कई स्थानों में बीएसएफ की टीम पर गोलीबारी की गई। बीएसएफ कई घरों में जमा किए पत्थर हटा रही है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के कारण केंद्रीय सुरक्षा बलों की 17 कंपनियां तैनात की गई वरना पश्चिम बंगाल पुलिस के रहते क्या हो रहा था और क्या होता, कल्पना करने भर से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भले आप आलोचना करिए और उनके विरोधी हों। इन विकट परिस्थितियों में हिन्दू समाज के साथ इनके अलावा कोई खड़ा नहीं दिखता। अन्य पार्टयिों की स्थानीय इकाइयां सच देखती हैं, भूमिका निभाता भी चाहती हैं, लेकिन प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में नहीं करतीं। स्थानीय भाजपा के कई नेताओं ने प्रदेश में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम या अफस्पा लागू करने की मांग की है। आपको भले नागवार गुजरे किंतु पश्चिम बंगाल की स्थिति को देखिए और निष्कर्ष निकालिए कि वहां क्या किया जाना चाहिए?
किसी का वक्फ संशोधन कानून से विरोध है तो उसका तरीका हिन्दुओं पर हमला कैसे सकता है? वैसे तो वक्फ के कानून में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे मुसलमान या इस्लाम के विरुद्ध साबित किया जा रहा है। इस तरह का जहर फैलाने वाले वास्तव में स्वयं मुस्लिम समाज के दुश्मन हैं। बावजूद अगर आपको विरोध करना ही है तो इसके लिए हिन्दुओं के घरों पर हमले करने, धर्मस्थलों को क्षतिग्रस्त करने, हत्याएं करने, दुकान-घर जलाने आदि की क्या आवश्यकता है? ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने देशव्यापी विरोध का आह्वान किया था। क्या हिंसा के लिए उसे दोषी नहीं माना जाना चाहिए?
हमलावरों की तैयारी कितनी थी, इसका अनुमान इसी से लगाइए कि पलायित लोग बता रहे हैं कि वे गैस सिलेंडरों को खोल कर दियासलाई से आग लगा रहे थे और पेट्रोल डाल रहे थे। आगजनी, पत्थरबाजी और गोली चलाने के लिए पहले की तैयारी चाहिए। गुना में हनुमान जयंती की शोभा यात्रा पर जितनी भारी संख्या में पत्थर चले और आगजनी हुई उसकी तैयारी एकाएक संभव नहीं। इसी तरह हजारीबाग में हुआ। लंबे समय से हम देख रहे हैं कि हिन्दुओं से जुड़े उत्सवों, शोभा यात्राओं, प्रतिमा विसर्जनों आदि पर इसी तरह पत्थरों से हमले होते हैं। फिर अग्निकांड होता है। इससे भी डरावना सच यह है कि कोई बड़ा मुस्लिम नेता या संगठन हिंसा के विरु द्ध मुखर होकर सामने नहीं आता। दूसरे पक्ष को ही दोषी ठहराने का अभियान चलता है, और कहा जाता है कि हमले उनके उकसाने पर हुए। किसी के उकसाने पर हजारों-लाखों की संख्या में पत्थर, पेट्रोल बम पैदा हो सकते हैं।
मुर्शिदाबाद पर बंगाल की ममता सरकार में मंत्री सिद्धीकुल्ला चौधरी कह रहे हैं कि हिंसा में बाहरी और भाजपा के लोग शामिल थे, वे बीएसएफ की गोली से मारे गए। जंगीपुर के स्थानीय तृणमूल सांसद खलीलुर रहमान का बयान भी यही है। तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष का वक्तव्य है कि एक राजनीतिक दल ने बाहर से अपराधियों को लाकर बीएसएफ के सहयोग से मुर्शिदाबाद में तांडव मचाया है।
ममता सरकार और उनकी पार्टी का स्टैंड यही है तो आप उनसे क्या उम्मीद कर सकते हैं। यह पहली बार नहीं है। पिछले वर्ष लगभग इसी समय वर्धमान जिले में बम विस्फोट की जांच करने गई एनआईए टीम पर हमले हुए। विस्फोट बम बनाने के दौरान हुआ और मरने वाले तीनों तृणमूल कांग्रेस के थे। जाहिर है इसमें किसके गले तक हाथ पहुंचता है। चाहे शाहजहां शेख पर कार्रवाई करने गई टीम हो या अन्य जगह वहां हमेशा बड़ी संख्या में उन्हें हिंसक विरोध का सामना करना पड़ता है, खदेड़ा जाता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर पूरी सरकार, पार्टी हमला बोल शैली में साथ खड़ी होती है। जब सरकार और पुलिस प्रशासन का भय नहीं हो तो कट्टरवादी तत्व ऐसे ही उन्माद फैलाते हैं।
तो सच को सच की तरह देखिए। पश्चिम बंगाल संपूर्ण देश के लिए ऐसा डरावना प्रश्न बना हुआ है, जिसका अभी तक उत्तर नहीं मिला है। उनके संदर्भ में हिन्दू संगठनों, सरकारों तथा पार्टयिों को नये सिरे से अपनी रणनीति और व्यवहार तय करना होगा। मुस्लिम समुदाय के अंदर भी उदारवादी तबके को उनके विरुद्ध खुल कर सामने आना चाहिए। यह देश बचाने का प्रश्न है। जो समाज अपनी आत्मरक्षा और प्रतिरोध की शक्ति खो देता है, उसकी कोई रक्षा नहीं कर सकता।
इस समय हिन्दू समाज संविधान के तहत हिंसा या गलत के प्रतिरोध के अंधकार तक का इस्तेमाल करने का साहस नहीं दिखा रहा। न्यायालय की स्थिति यह है कि 2021 में हिन्दुओं के पलायन का मामला उच्चतम न्यायालय में आया और सुनवाई के दौरान एक बंगाली न्यायमूर्ति ने पहले अपने को अलग किया। फिर सुनवाई आरंभ हुई और एक और बंगाली जज साहब ने स्वयं को अलग कर लिया। इस कारण वह बाधित रही। वैसे भी न्यायालय ऐसी बढ़ती या स्थाई हो चुकीं प्रवृत्तियों का समाधान नहीं कर सकते।
(लेख में विचार निजी हैं)
अवधेश कुमार |
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