युद्ध कोई बॉलीवुड की फिल्म नहीं, कूटनीति पहली पसंद: पूर्व सेना प्रमुख जनरल नरवणे

May 12, 2025

पूर्व सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष रोकने के फैसले पर उठ रहे सवालों की आलोचना करते हुए कहा कि ‘‘युद्ध न तो रोमांटिक होता है और न ही यह बॉलीवुड की कोई फिल्म है।’’ उन्होंने रविवार को पुणे में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि यदि आदेश मिलेगा तो वह युद्ध के लिए तैयार रहेंगे, लेकिन उनकी पहली प्राथमिकता हमेशा कूटनीति रहेगी।

पूर्व सेना प्रमुख ने बताया कि यह एक उथल-पुथल भरा सप्ताह रहा है, जिसकी शुरुआत ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से हुई। इसके अंतर्गत भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों और बुनियादी ढांचे पर हमला किया जिसके बाद चार दिनों तक हवाई और कुछ जमीनी लड़ाइयां चलीं।

उन्होंने कहा, ‘अंत में सैन्य कार्रवाई रोके जाने की घोषणा की गई। मैं दोहराना चाहूंगा कि यह केवल सैन्य कार्रवाई की समाप्ति है, संघर्ष विराम नहीं है। देखिए, आने वाले दिनों और हफ्तों में चीजें कैसे सामने आती हैं।’

उन्होंने कहा कि कई लोगों ने सैन्य कार्यवाही के निलंबन के बारे में सवाल उठाए हैं और कहा है कि क्या यह अच्छी बात है।

उन्होंने कहा, ‘यदि आप तथ्यों और आंकड़ों पर विचार करें, खास कर युद्ध की लागत पर, तो आपको एहसास होगा कि एक बुद्धिमान व्यक्ति बहुत अधिक या अपूर्णीय नुकसान होने से पहले ही निर्णय ले लेता है।’

उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना ​​है कि हमने पाकिस्तान को यह साबित कर दिया है कि उनके आतंकवाद के रास्ते पर चलते रहने की कीमत बहुत अधिक होगी। इसी बात ने उन्हें बाध्य किया और अंततः उनके डीजीएमओ ने संघर्ष विराम की संभावना पर चर्चा करने के लिए हमें फोन किया।’

उन्होंने कहा कि इसका एक तीसरा पहलू भी है, वह सामाजिक है।

नरवणे ने कहा कि जब रात में गोले गिरते हैं और सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों, खासतौर पर बच्चों को शरण स्थलों की ओर भागना पड़ता है, तो वह अनुभव उनके मन में गहरी वेदना छोड़ता है। उन्होंने कहा कि अपने अभिभावकों को खोने का दर्द और इस तरह का विनाश भला कौन बच्चा भूल पाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘जिन्होंने अपने परिजन खोए हैं, उनके लिए वह दर्द पीढ़ियों तक बना रहता है। इसे ‘पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’ (पीटीएसडी) कहते हैं। जो लोग ऐसे भयानक दृश्य देखते हैं, वे 20 साल बाद भी पसीने में भीगकर उठते हैं और उन्हें मनोचिकित्सकीय मदद की जरूरत पड़ती है।’

यह कार्यक्रम ‘भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान’ द्वारा आयोजित किया गया था।

नरवणे ने कहा, ‘युद्ध कोई रोमांटिक बात नहीं है। यह आपकी कोई बॉलीवुड फिल्म नहीं है। यह एक गंभीर विषय है। युद्ध या हिंसा अंतिम विकल्प होना चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। भले ही अविवेकी लोग हम पर युद्ध थोपें, हमें उसका स्वागत नहीं करना चाहिए।’

उन्होंने कहा, ‘फिर भी लोग पूछ रहे हैं कि हमने अब तक पूरी ताकत से युद्ध क्यों नहीं किया। एक सैनिक के रूप में यदि आदेश दिया जाएगा तो मैं युद्ध में जाऊंगा, लेकिन वह मेरी पहली पसंद नहीं होगी।’

जनरल नरवणे ने कहा कि उनके विकल्प कूटनीति, संवाद के माध्यम से मतभेदों को सुलझाना और सशस्त्र संघर्ष की नौबत न आने देना होंगे।

उन्होंने कहा, ‘हम सभी राष्ट्रीय सुरक्षा के समान हिस्सेदार हैं। हमें सिर्फ देशों के बीच ही नहीं, बल्कि अपने बीच, अपने परिवारों, राज्यों, क्षेत्रों और समुदायों के बीच भी मतभेदों को संवाद से सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।’

रक्षा बजट के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जनरल नरवणे ने कहा कि ‘बंदूक बनाम मक्खन’ की बहस बहुत पुरानी है।

उन्होंने सवाल किया, ‘जब इतनी सारी परस्पर विरोधी प्राथमिकताएं हों, तो किसी देश को रक्षा पर कितना खर्च करना चाहिए? क्या आपको उन सभी चीजों पर खर्च करना चाहिए, जो आपने टीवी पर देखी हैं या आपको शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता, सफाई और कई अन्य समान रूप से महत्वपूर्ण मांगों पर खर्च करना चाहिए?’

उन्होंने बताया कि रक्षा मंत्रालय राष्ट्रीय बजट का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा लेता है और इसी प्रकार का निवेश किया जाना है।

जनरल नरवणे ने कहा, ‘अब आप पूछेंगे कि क्या यह एक सार्थक निवेश है या यह पैसा बरबाद हो रहा है? तो, मैं इसे दो या तीन अलग-अलग तरीकों से समझाऊंगा। सबसे पहले, मैं यह कहना चाहूंगा: इसे एक प्रीमियम बीमा के रूप में देखें।’

उन्होंने कहा कि देश को आपातस्थिति के लिए एक बैकअप योजना की आवश्यकता है और यह बात पिछले सप्ताह स्पष्ट रूप से सामने आई।

जनरल नरवणे ने कहा, ‘यदि आपके सशस्त्र बल अच्छी तरह से तैयार और सुसज्जित हैं, तो वे किसी भी ऐसी आपात स्थिति से निपटने में सक्षम हैं जो देश पर बिना किसी चेतावनी के थोपी जा सकती है। यह ठीक उसी तरह है जैसे दुर्घटनाएं बिना किसी चेतावनी के घटित होती हैं।’

उन्होंने कहा कि मुख्य अंतर यह है कि बीमा के मामले में लाभ दुर्घटना के बाद मिलता है, जबकि अच्छी तरह से तैयार सेना दुर्घटना को होने से पहले ही रोकने में मदद करती है।

जनरल नरवणे ने कहा, ‘यदि आप अच्छी तरह से तैयार हैं, तो दूसरे आप पर हमला करने से पहले दो बार सोचेंगे।’


भाषा
पुणे

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