ये ’दाग‘ अच्छे नहीं हैं

July 31, 2022

राजनीति को संभावनाओं का खेल और धारणाओं का मेल कहा गया है। धारणा मतलब परसेप्शन।

राजनीति में इस परसेप्शन की महिमा इतनी निराली है कि कई बार इसके सामने सत्ता की ताकत भी बौनी पड़ जाती है। देश की पिछली यूपीए सरकार इसका प्रमाण है, जिसके गिरने की एक बड़ी वजह ही उसको लेकर बनी भ्रष्ट होने की धारणा थी। कभी उसी यूपीए का हिस्सा रहीं ममता बनर्जी की भ्रष्टाचार को लेकर बेदाग होने की धारणा आज सवालों के घेरे में है।

नीले बॉर्डर वाली सादी सफेद साड़ी और रबड़ की चप्पल के साथ ही साफ-सुथरी छवि ममता बनर्जी के राजनीतिक कॅरियर की खास पहचान रही है। तीन बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री होने के बावजूद ममता आज भी एक ऐसी आंदोलनकारी नेता कही जाती हैं, जो मां-माटी-मानुष की लड़ाई में व्यवस्था से भिड़ जाती हैं, लेकिन करीब साढ़े चार दशक के लंबे राजनीतिक संघर्ष और बेहद सावधानी से बनाई गई उनकी यह छवि आज दोराहे पर आ खड़ी हुई है।

पश्चिम बंगाल सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले और ममता के सबसे विस्त सहयोगियों में शामिल पार्थ चटर्जी की एक कथित करीबी दोस्त के घर से 50 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी की बरामदगी की तस्वीरों ने बंगाल और भारत के लोगों की अंतरात्मा को भी झकझोर कर रख दिया है। अवैध धन का अंबार, उससे जुड़ा घोटाला और घोटाले से जुड़े नेता की कथित संलिप्तता से ममता की राजनीति को संभवत: पहली बार कोई बड़ी नैतिक चुनौती मिली है। मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी जैसे नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद पश्चिम बंगाल की सियासत में पार्थ चटर्जी की भूमिका ममता के लिए काफी कुछ वैसी हो गई थी जैसी महाभारत में कृष्ण के लिए अर्जुन की थी। ममता संगठन और सरकार की राह में आने वाली कई चुनौतियों का हल पार्थ चटर्जी के जरिए निकाला करती थीं। करीबी इतनी है कि ममता उन्हें दादा कहकर बुलाती हैं। इसलिए यह कहने की जरूरत नहीं कि दीदी के यह ‘दादा’ तृणमूल के बड़े नेता ही नहीं, बड़े राजदार भी हैं। इस वजह से भी ममता राजनीतिक आरोपों के सीधे निशाने पर हैं।

बंगाल ही नहीं, देश की राजनीति के लिहाज से भी इस घटना के गहरे निहितार्थ हैं। ममता तीन बार की मुख्यमंत्री हैं और इनमें से दो बार वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में ही निर्वाचित हुई हैं। इन तमाम वर्षो में उन पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा है। मेरी निजी मान्यता है कि यह इस वजह से नहीं है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों ने उन पर कोई ‘ममता’ दिखाई है या उन्हें कोई रियायत दी है। बल्कि प्रमुख विपक्षी नेता होने के कारण उनके खिलाफ तो जांच एजेंसियों की पड़ताल और भी गहन रही होगी, लेकिन अब तक उनके हाथ ऐसा कोई सुराग नहीं लग पाया जो ममता को भ्रष्टाचार के कठघरे में खड़ा कर सके। पिछले साल भवानीपुर में उपचुनाव के दौरान चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामे के मुताबिक भी ममता बनर्जी के पास केवल 69 हजार 255 रुपये कैश और 9 ग्राम ज्वेलरी होने की जानकारी सामने आई। ममता मुख्यमंत्री के तौर पर अपना वेतन भी नहीं लेती हैं और उसे राहत कोष में जमा करा देती हैं। इसके अलावा पूर्व सांसद के रूप में मिलने वाले भत्ते को भी वह राहत कोष में जमा कराती हैं। उनकी निजी आमदनी का एकमात्र जरिया उनकी वे किताबें हैं जिनकी रॉयल्टी उन्हें मिलती है। आर्थिक पारदर्शिता का यही नैतिक बल एक ही समय में राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ममता की ढाल और उन पर हमले का हथियार बनता रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक के खिलाफ ममता की आक्रामकता को इसी वजह से बल मिला करता था।  

हालांकि तृणमूल के नेताओं पर भ्रष्टाचार का यह कोई पहला आरोप नहीं है। ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रुजिरा कथित कोयला घोटाले को लेकर खुद केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर हैं। पिछले साल विधानसभा चुनाव में तृणमूल की जबर्दस्त जीत के बाद कैबिनेट मंत्री और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम, कैबिनेट मंत्री दिवंगत सुब्रत मुखर्जी और विधायक मदन मित्रा को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। पहले सीबीआई ने तृणमूल सांसद सुदीप मुखर्जी को भी गिरफ्तार किया था। मुखर्जी इस समय पार्टी के लोक सभा नेता हैं। बीरभूम के तृणमूल जिलाध्यक्ष अनुब्रत मंडल भी सीबीआई और ईडी के रडार पर हैं। इन तमाम मामलों में ममता अपने सहयोगियों के लिए लड़ती दिखी थीं, लेकिन इस बार उनका खामोश रहना और अपने ही साथी पर कार्रवाई करना स्पष्ट संकेत है कि खुद ममता भी अब मान रहीं हैं कि मामला अलग है।

इस प्रकरण में ममता को लेकर एक धारणा को और चुनौती मिली है। ऐसा माना जाता रहा है कि तृणमूल कांग्रेस पर ममता का पूरा नियंत्रण है, लेकिन बंगाल और तृणमूल कांग्रेस की राजनीति में इतनी बड़ी हैसियत रखने के बावजूद पार्थ चटर्जी के खिलाफ ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में हुआ सजा के ऐलान को पार्टी में सत्ता के एक और केन्द्र के उदय के रूप में देखा जा रहा है। निजी बातचीत में तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने भी माना कि पार्टी में इससे पहले कभी इतनी तत्परता से प्रतिक्रिया देने की परंपरा नहीं रही। हालांकि अभिषेक ने इतना कुछ ममता की रजामंदी के बगैर किया होगा इस पर संदेह है। ऐसी भी खबरें हैं कि ईडी की हिरासत में पार्थ चटर्जी ने ममता से लगातार संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन ममता की ओर से कोई तवज्जो नहीं मिली।

सवाल अकेले पार्थ चटर्जी का नहीं है बल्कि ममता बनर्जी की प्रदेश से निकलकर देश की राजनीति पर छाने की योजना का है। ईडी और सीबीआई इस एक मामले में जांच के बाद रुक जाएगी, ऐसा नहीं लगता, बल्कि इस बात की आशंका ज्यादा है कि यह घोटाला ममता सरकार के कई और मंत्रियों के खिलाफ जांच का एंट्री प्वाइंट बन जाए। ऐसा हुआ तो यह विपक्षियों खासकर बीजेपी को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ सड़कों पर उतरने का मौका देगा। प्रदेश से लेकर केंद्र की राजनीति तक तृणमूल कांग्रेस के विरोधियों के पास अब तक ममता सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की कोई काट नहीं थी, लेकिन यह घोटाला एक तरफ प्रदेश की राजनीति में ममता पर आरोपों की धार तेज कर सकता है, वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री पद पर ममता की दावेदारी को भी खटाई में डालेगा। ऐसा लगता है कि ममता ने इस खतरे का समय रहते भांप लिया है। तभी तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर कांग्रेस और कुछ अन्य दलों से खिंची-खिंची ममता ने नये सिरे से विपक्ष को लामबंद करने की शुरु आत कर दी है। इसके लिए ममता अगले कुछ दिनों के लिए दिल्ली पहुंच रहीं हैं। ऐसी भी अटकलें हैं कि दामन साफ रखने के लिए ममता सत्ता से लेकर संगठन तक बड़े बदलाव कर सकती हैं। ममता बनर्जी के सामने डैमेज कंट्रोल की संभावनाएं अनंत हैं, लेकिन मूल प्रश्न घूम-फिरकर हर कीमत पर बेदाग छवि को लेकर बनी धारणा की सुरक्षा का ही है।


उपेन्द्र राय
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ

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