ब्रिटेन में भारत ’राज‘, ऋषि के सिर ताज?

July 10, 2022

कौन बनेगा ब्रिटेन का प्रधानमंत्री? इस सवाल का शाब्दिक विन्यास मैंने जान-बूझकर ऐसा रखा है कि यह ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की तर्ज पर प्रतिध्वनित हो, क्योंकि केवल ब्रिटेन की राजनीति के लिए ही नहीं, यह सवाल समूची दुनिया के लिए करोड़ों का सवाल बन गया है।

प्राथमिक तौर पर यह लगता है कि जवाब अक्टूबर तक मिलेगा, जो नये प्रधानमंत्री की नियुक्ति की डेडलाइन है, लेकिन जिस तरह बोरिस जॉनसन की विदाई हुई है उसे देखते हुए यह काफी मुश्किल लगता है कि नये उत्तराधिकारी के लिए ब्रिटेन इतने लंबे इंतजार के लिए तैयार होगा। बल्कि ब्रिटेन को जल्द ही किसी वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत है, क्योंकि राज्य के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने या तो इस्तीफा दे दिया है, या उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है या उन्होंने जॉनसन पर विश्वास नहीं होने का संकेत दिया है।

सरकार एक टीम की तरह होती है जो सटीक आदेश और स्पष्ट नेतृत्व की बुनियाद पर संचालित होती है। ब्रिटेन में यह दोनों बुनियादें बिखरी हुई हैं और देश को एक नये नेतृत्व की जल्द जरूरत है। ब्रिटेन की ‘खुशकिस्मती’ से प्रधानमंत्री की कुर्सी के दावेदारों की कोई कमी नहीं है और हमारे लिहाज से जो बात महत्त्वपूर्ण है वो यह है कि इनमें कई भारतवंशी भी शामिल हैं। जॉनसन के इस्तीफे के महज तीन दिन के अंदर ही उनके विकल्प के रूप में तीन भारतवंशियों के नाम सामने आ गए हैं ऋषि सुनक, प्रीति पटेल और सुएला ब्रेवरमैन। ऋषि सुनक जॉनसन सरकार में वित्त मंत्री थे, जबकि प्रीति पटेल गृह सचिव (जो हमारे गृहमंत्री पद के समकक्ष होता है) और सुएला अटॉर्नी जनरल हैं। इनके अलावा व्यापार राज्य मंत्री पेनी मोरडॉन्ट और रक्षा सचिव बेन वालेस भी दौड़ में हैं। एक अन्य नाम पाकिस्तानी मूल के साजिद जाविद का है, जो पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे, लेकिन अभी तक उन्होंने खुद अपनी तरफ से कोई दावेदारी पेश नहीं की है।

तमाम नामों में सुनक की दावेदारी सबसे मजबूत आंकी जा रही है। सुनक इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति के दामाद हैं और उनके इस्तीफे को ही जॉनसन सरकार के ताबूत में आखिरी कील माना जा रहा है। सुनक के इस्तीफा देने के बाद साजिद जाविद समेत 50 से अधिक अन्य मंत्री और अधिकारी सरकार से पलायन कर गए। ब्रिटेन की संसदीय परंपरा के अनुसार सुनक ने शुक्रवार को पीएम पद के लिए अपनी दावेदारी भी पेश कर दी। ब्रिटिश मीडिया के अनुसार अपने अभियान के लिए सुनक ने लंदन में संसद के पास ही के एक होटल में अस्थायी कार्यालय स्थापित किया है। कई कंजरवेटिव सांसद अभी से सुनक के समर्थन में हैं क्योंकि एक तो वो सभी सांसदों में सबसे सक्षम हैं, दूसरा ब्रेक्सिट के मद्देनजर ब्रिटेन के बढ़ते आर्थिक संकट का मुकाबला करने के सबसे योग्य उम्मीदवार भी हैं।

लंदन की ओपिनियन पोल एजेंसी पोलिंग फर्म जेएल पार्टनर्स का कहना है कि 2,000 लोगों के सर्वेक्षण में सुनक जनता की पसंद में भी बढ़त बनाए हुए हैं। ब्रिटेन का सट्टा बाजार भी सुनक को सबसे आगे बता रहा है। रेस में सुनक के सबसे आगे होने का संकेत इस बात से भी मिलता है कि अधिकांश विरोधी सांसद उन्हीं पर निशाना साध रहे हैं। सुनक के लिए यह एक बड़ी वापसी है क्योंकि ऐसा लग रहा था कि उन्हें अपनी पत्नी अक्षता मूर्ति की संपत्ति और उनके टैक्स बिलों को कम करने के लिए एनआरआई के दावे के विवाद के कारण ब्रिटिश राजनीति से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इंफोसिस के शेयरों का एक बड़ा हिस्सा रखने वाली अक्षता की कुल संपत्ति का ताजा अनुमान 700 मिलियन पाउंड के करीब है। सुनक के अतिरिक्त ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की दौड़ दक्षिण एशियाई चेहरों से भरी हुई है; जिनमें प्रीति पटेल, सुएला ब्रेवरमैन और पाकिस्तान के साजिद जावेद शामिल हैं। 42 साल की सुएला अटॉर्नी जनरल हैं और ब्रेक्जिट समर्थक हैं, लेकिन लगता नहीं कि वो रेस में ज्यादा दूर तक जा पाएंगी। प्रीति पटेल होम सेक्रेटरी हैं। प्रीति की पहचान कट्टरपंथी के तौर पर मानी जाती रही है और यही बात उन्हें ब्रिटिश जनता के बीच अलोकप्रिय भी बनाती है, जिसकी वजह से वो फिलहाल कमजोर दावेदार दिख रही हैं।

सुनक के बारे में खास बात यह है कि वे 2015 में पहली बार रिचमंड से सांसद बने और केवल पांच साल में ही कैबिनेट मंत्री बन गए। इस रफ्तार को कायम रखते हुए अगले कुछ महीनों में अगर वो ब्रिटेन की सबसे ऊंची कुर्सी तक पहुंच भी जाते हैं तो उनका आगे का सफर बेहद चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। इसकी वजह है जॉनसन से मिलने जा रही राजनीतिक विरासत जिसमें न सिर्फ  पिछले तीन साल में कई दाग लगे हैं, बल्कि ब्रेक्जिट के बाद वो आर्थिक अव्यवस्था की भी शिकार है। ऐसी सूरतेहाल क्यों बनी, इसकी एक नहीं कई वजहे हैं और विफलताएं भी राजनीतिक के बजाय व्यक्तिगत ज्यादा हैं। जॉनसन की कुर्सी पिछले महीने से ही डांवाडोल हो रही थी। जून में 41 फीसद सांसदों ने वोट के जरिए उनके नेतृत्व में अविश्वास व्यक्त किया था। वैसे विद्रोह के संकेत और भी पहले मिलने लगे थे। पिछले साल कोविड लॉकडाउन के दौरान डाउनिंग स्ट्रीट में जन्मदिन के जश्न के बदले में पुलिस ने बतौर प्रधानमंत्री जॉनसन पर जुर्माना लगाया था। ब्रिटेन की राजनीति में यह घटना पार्टीगेट स्कैंडल के नाम से कुख्यात हो चुकी है।

यौन र्दुव्‍यवहार के आरोपित सांसदों के कारण भी जॉनसन को शर्मिदगी झेलनी पड़ी। इनमें से एक इमरान अहमद खान नाम के सांसद थे, जिन्हें 15 साल के लड़के के यौन शोषण का दोषी पाया गया, जबकि नाल पैरिश नाम के एक अन्य कंजरवेटिव सांसद को हाउस ऑफ कॉमन्स में अपने फोन पर दो बार पोर्न फिल्म देखने की स्वीकारोक्ति के बाद सांसदी से हाथ धोना पड़ा था। बाद में जब दोनों की खाली सीट पर उपचुनाव हुए तो कंजरवेटिव पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया। इससे भी जॉनसन की नैतिक शक्ति कम हुई, लेकिन तख्तापलट की तात्कालिक वजह बना क्रिस्टोफर पिंचर को लेकर जॉनसन का झूठ जिसकी पोल खोली एक वरिष्ठ पूर्व सरकारी कर्मचारी ने। इस कर्मचारी ने आरोप लगाया कि जॉनसन के कार्यालय ने सांसद क्रिस्टोफर पिंचर के खिलाफ पिछले यौन उत्पीड़न के आरोपों के बारे में गलत जानकारी दी थी। फरवरी में ही जॉनसन ने पिंचर को डिप्टी चीफ व्हिप नियुक्त किया था। गलती कबूल कर लेने पर जब पिंचर को पिछले हफ्ते पार्टी से निलंबित किया गया तो जॉनसन का कार्यालय दावा कर रहा था कि प्रधानमंत्री पिंचर के खिलाफ पिछले आरोपों से वह अनजान थे, लेकिन इस पूर्व कर्मचारी ने पत्र लिखकर जॉनसन का भंडाफोड़ कर दिया कि उन्हें 2019 में ही पिंचर की ‘कारगुजारी’ के बारे में अवगत करा दिया गया था।

इन सबने महामारी और रूस-यूक्रेन संकट से निपटने में एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता की छवि बनाने की जॉनसन की तमाम कोशिशों पर पानी फेर दिया। तीन साल पहले जॉनसन ने थैचर जैसा करिश्मा दिखाते हुए कंजरवेटिव पार्टी को 80 सीटों का बहुमत दिलाया था। तब उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इतनी बुलंदियों पर पहुंचने के बाद उनका पतन इतनी तेजी से हो जाएगा। यह तो बिल्कुल ही नहीं सोचा होगा कि जुम्मा-जुम्मा चार दिन पहले मंत्री बने सांसद ही उनके खिलाफ मुखर होकर इस्तीफा मांगेंगे, लेकिन जॉनसन जिस तरह की राजनीति कर रहे थे, उसकी नियति शायद यही होनी थी। बहरहाल ब्रिटेन एक ऐसी नियति की ओर बढ़ रहा है जिसमें इतिहास नई करवट लेता दिख रहा है। अगर सब कुछ अनुमानों के अनुसार रहा तो अगले कुछ महीनों में हम एक भारतवंशी को उस देश की कमान थामे देख सकते हैं जिसने हम पर कभी 200 साल तक शासन किया था। यह भी शायद नियति का संयोग ही होगा गुलामी के ‘जहर’ का अंश आजादी के अमृत काल में दूर होगा।


उपेन्द्र राय
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ

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