दुनिया में बवंडर चीन पर सरेंडर

September 4, 2022

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के निवर्तमान उच्चायुक्त की रिपोर्ट ने चीन में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न के मसले को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है।

45 पन्नों की इस रिपोर्ट में शिनिजयांग प्रांत के दर्जनों उइगर मुसलमानों के साक्षात्कार हैं, जिनके रुह कंपाने वाले विवरण की तुलना ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ से की गई है। साक्षात्कार में पीड़ितों ने बताया है कि कैसे उन्हें कुर्सी से बांध कर डंडों से पीटा गया, पूछताछ के दौरान चेहरे पर पानी फेंका गया, लंबे समय तक एकांत में रखा गया, लगातार निगरानी की गई, नींद और भोजन से वंचित किया गया और अपनी भाषा बोलने या अपने धर्म का पालन करने से रोका गया। कुछ ने बलात्कार, यौन उत्पीड़न और जबरन नग्नता सहित यौन हिंसा की अनगिनत बातें कही हैं। वहीं कई पीड़ितों को इलाज के बारे में बताए बगैर जबरन इंजेक्शन और गोलियां तक दी गई। इतना ही नहीं, हिजाब और असामान्य रूप से बड़ी दाढ़ी रखने, बच्चों को मुस्लिम नाम देने और रमजान के दौरान रेस्तरां बंद रखने पर रोक लगाने के लिए भी उन पर नये नियम थोपे गए।  

रिपोर्ट में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला दावा उइगर मुसलमानों की जन्म दर में बाकी चीन की तुलना में हुई तेज गिरावट का है। इसकी पुष्टि करते हुए कई साक्षात्कारकर्ताओं ने जबरन नसबंदी सहित जबरन बधियाकरण की बात कही है। रिपोर्ट में चीन के कथित निगरानी नेटवर्क का भी विस्तार से वर्णन मिलता है, जिसमें पुलिस डाटाबेस में बायोमेट्रिक डाटा जैसे चेहरे और आंखों के स्कैन के साथ सैकड़ों हजारों फाइलें हैं, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि वहां किस तरह से उइगर मुसलमानों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता की हर पल धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।   

वैसे ये दावे नये नहीं हैं। पांच साल पहले अमेरिकी विदेश विभाग ने चीन पर 20 लाख उइगर और दूसरे अल्पसंख्यकों को डिटेंशन केंद्रों में रखने का आरोप लगाया था। पिछले साल अमेरिका ने अपनी भाषा सख्त करते हुए उइगर मुसलमानों के दमन और उत्पीड़न को नरसंहार तक बताया था। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट से हुआ खुलासा बताता है कि तमाम सख्ती दिखाने के बावजूद चीन के रवैये में कोई फर्क नहीं आया है। इसके बावजूद यह रिपोर्ट उल्लेखनीय है क्योंकि इस दफा पहली बार आरोपों पर संयुक्त राष्ट्र की औपचारिक मुहर लगी है। इसलिए यह भी पहली बार ही हुआ है कि जुबानी जमाखर्च करने की जगह अपने झूठ पर पर्दा डालने के लिए चीन को 131 पेज की रिपोर्ट जारी करनी पड़ी है। हालांकि यह भी सच है कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का कोई कानूनी आधार नहीं है, इसलिए चीन के रु ख में रत्ती भर भी बदलाव की उम्मीद करना बेवकूफी ही होगी।

बहरहाल, दूसरी तरफ दो बातें उम्मीद के अनुसार ही हुई हैं। पहली, अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने इस रिपोर्ट का स्वागत किया है; और दूसरी, मुस्लिम आबादी पर जुल्म और सितम के इतने बड़े खुलासे के बावजूद इस्लामी देशों में सन्नाटा ही पसरा दिखाई दे रहा है। ये वही देश हैं, जो दुनिया के किसी भी कोने में इस्लाम से जुड़े मसलों पर बवंडर खड़ा कर देते हैं, लेकिन चीन के मामले में सरेंडर कर देते हैं। पैगंबर मोहम्मद के कार्टून के विरोध में फ्रांस में अखबार के दफ्तर पर हमले से लेकर भारत में पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी पर ‘सर तन से जुदा’ का फतवा जारी करने वाले तमाम मुस्लिम देशों की चीन की इस हरकत पर बोलती बंद है। इस्लामी देशों का अगुआ माना जाने वाला सऊदी अरब हो या पाकिस्तान या फिर मलयेशिया, सभी देश खामोश हैं। ईरान तो पहले ही उइगरों के दमन को इस्लाम की सेवा बता चुका है। इस्लामी देशों के दोहरे मापदंडों का हाल यह है कि विरोध जताना तो दूर, अगर कोई उइगर मुसलमान किसी तरह चीन से निकल कर इन देशों में पहुंच भी जाता है, तो ये देश उसे वापस चीन को सौंपने के लिए उतावले हो जाते हैं। इस मामले में मिस्र, सऊदी अरब, यूएई सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। सीएनएन की एक रिपोर्ट बताती है कि 2017 के बाद से अकेला मिस्र ही 200 उइगर मुसलमानों को चीन को सौंप चुका है। जब पश्चिमी देश शिनिजयांग में उइगर मुसलमानों के कथित दमन का मामला संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में ले गए, तो चीन के साथ खड़े होने वाले 37 देशों में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, पाकिस्तान, अल्जीरिया, बहरीन, तुर्कमेनिस्तान, ओमान, कतर, सीरिया, कुवैत, सोमालिया, सूडान जैसे अधिकतर मुस्लिम देश शामिल थे।

दरअसल, खामोशी के इस पूरे खेल के पीछे एक बड़ा अर्थतंत्र काम कर रहा है, और इस अर्थतंत्र को चलायमान रखने का काम कर रहा है चीन का महत्त्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’। दुनिया भर में अपने उत्पादों के विस्तार में जुटे चीन का यह प्रोजेक्ट एशिया, अफ्रीका, यूरोप और ओशिनिया के 78 देशों को रेलमार्ग, शिपिंग लेन और अन्य नेटवर्क के माध्यम से जोड़ता है। इसमें मध्य-पूर्व के कई मुस्लिम देश शामिल हैं।  इसके अलावा भी चीन ने 50 मुस्लिम देशों में बड़े पैमाने पर निवेश किया हुआ है। ‘अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट एंड द हेरिटेज फाउंडेशन’ के आंकड़े बताते हैं कि 2005 से लेकर 2020 के बीच के 15 वर्षो में चीन ने सऊदी अरब, यूएई, इंडोनेशिया, मलयेशिया, नाइजीरिया, अल्जीरिया, कजाकिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, मिस्र और तुर्की में कुल 421.59 अरब डॉलर के निवेश या करार किए। सऊदी अरब, ईरान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलयेशिया और मिस्र के साथ भविष्य के उसके करार को इसमें जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा 1.3 ट्रिलियन डॉलर को भी पार कर जाता है। मतलब यह कि चीन अब इन मुस्लिम देशों का ‘नया अमेरिका’ बन चुका है। कोरोना काल में यह दोस्ताना और भी गहरा हुआ है। अपना प्रभाव कायम करने के लिए चीन ने शुरु आत में मुस्लिम देशों को वैक्सीन की 1.5 अरब डोज मुफ्त में दीं, लेकिन चीन के चरित्र को करीब से जानने वालों को पता है कि चीन मुफ्त में कुछ भी नहीं करता। चीन अगर एक हाथ से कुछ देता है, तो दोनों हाथों से उसे वापस भी वसूलता है। इस बात को सच साबित करते हुए चीन अब सऊदी से तेल का व्यापार अमेरिकी डॉलर की बजाय युआन में करने की योजना बना रहा है। सार यही है कि चीनी सिक्कों की खनक के आगे मुस्लिम देशों की हनक धरी-की-धरी गई है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उनकी बोलती ही बंद हो गई है।

बहरहाल, रिपोर्ट रोकने की चीन की तमाम कोशिशों के बाद भी अब जब उसका कच्चा चिट्ठा दुनिया के सामने आ चुका है, तो अब उसे सबक सिखाने की कवायद भी शुरू हो गई है। मुस्लिम देशों को आर्थिक गुलाम बना चुके चीन को आर्थिक चोट पहुंचाने के लिए अमेरिका सक्रिय हो गया है। बाइडेन प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि जी-7 देशों के साथ मिलकर इस संभावना को तलाशा जा रहा है कि किस तरह बंधुआ मजदूर बनाकर उइगर मुसलमानों द्वारा तैयार किए गए चीन के उत्पादों को व्यापार से अलग किया जाए। आने वाले दिनों में इस ‘आर्थिक स्ट्राइक’ का दायरा और व्यापक बनाया जा सकता है। कोरोनाकाल में अपनी आर्थिक धाक और वैश्विक साख, दोनों गंवा चुके चीन के लिए यह किसी आघात से कम नहीं होगा।
(लेखक सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ हैं)


उपेन्द्र राय
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ

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