भारत दुनिया का रोल मॉडल

April 19, 2020

कोरोना के खिलाफ जंग में भारत अब ऐसा योद्धा बन चुका है, जो दुनिया को घुटने पर लाने वाले ‘दुश्मन’ के खिलाफ ‘दीवार’ बनकर खड़ा है।

भारत ना थक रहा है, ना थम रहा है, बल्कि कोरोना की रफ्तार को कदम-दर-कदम चुनौती दे रहा है। पिछले ढाई महीनों की लड़ाई को देखें, तो यह साफ दिखता है कि भारत इस मामले में किसी भी दूसरे देश से ना केवल आगे खड़ा है बल्कि दुनिया की नींद उड़ा चुके इस जानलेवा वायरस से पूरी हिम्मत से लोहा भी ले रहा है। संक्रमण की रोकथाम हो या टेस्टिंग, जनता की सुरक्षा का सवाल हो या लॉक-डाउन में जरूरतमंदों तक सरकारी मदद पहुंचाने का इंतजाम, भारत हर मोर्चे पर दुनिया के लिए मिसाल साबित हुआ है। इतना ही नहीं, कोरोना के इलाज में संजीवनी कही जा रही दवा के निर्यात के बंद दरवाजे खोलकर भारत इस महामारी के खिलाफ वैश्विक एकजुटता का संदेश देने में भी कामयाब हुआ है।

सीमित संसाधनों और बेहद घनी आबादी के बावजूद भारत जिस तरह इस लड़ाई में लगातार नये मील के पत्थर स्थापित कर रहा है, उसकी दुनिया भर में सराहना हो रही है। कई देश तो इस जंग में भारत को बाकायदा अपना रोल मॉडल घोषित कर चुके हैं। डब्ल्यूएचओ, वर्ल्ड बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष जैसे वैश्विक संगठन भी हमारी सरकार के फैसलों के मुरीद बन गए हैं। कोरोनाजनित तबाही की बढ़ती रफ्तार और चीन और अमेरिका के झगड़ों से परेशान, डब्ल्यूएचओ तो अब भारत से ही कोई राह निकालने की उम्मीद लगा रहा है। उसका कहना है कि पोलियो को मात दे चुका भारत कोरोना से निपटने में भी कामयाब रहेगा। डब्ल्यूएचओ जिस ‘करिश्मे’ की बात कर रहा है, उसका किस्सा महज 6 साल पुराना है। साल 2014 में पोलियो के खिलाफ भारत ने इसी तर्ज पर लड़ाई लड़ी थी। जिस तरह आज कोरोना के मरीजों को ढूंढ-ढूंढ कर क्वारंटीन किया जा रहा है, उसी तरह उस वक्त भी पोलियो के एक-एक मरीज की तलाश की गई थी।

इस जंग में भारतीय मेधा की भी जमकर तारीफ हो रही है। भारत सरकार के ‘आरोग्य सेतु एप’ को वर्ल्ड बैंक ने कोरोना से लड़ाई का सबसे इनोवेटिव हथियार बताया है। इस एप से महज लक्षणों के आधार पर ही तय किया जा सकता है कि किसी शख्स को टेस्टिंग की जरूरत है या नहीं। साथ ही किसी इलाके में कोरोना संक्रमित मरीज की मौजूदगी की सटीक जानकारी भी मिल जाती है। अब हमारे एक्सपर्ट की दिखाई राह पर चलकर एप्पल और गूगल भी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए इसी तरह का एप बना रहे हैं। कोरोना से लड़ाई में लॉक-डाउन भारत का मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ है और इसकी चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष यानी भी कह चुका है भारत ने बिल्कुल सही समय पर लॉक-डाउन लागू करने का फैसला लिया है। आईएमएफ तो नरेन्द्र मोदी सरकार की उस सोच का भी कायल दिखा है कि बेशक लॉक-डाउन से आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ जाएगा, लेकिन अगर इससे कोरोना रुकता है तो आर्थिक वृद्धि में फिर उछाल आ सकता है। इसे अमेरिका, इटली, स्पेन जैसे देशों की जनता का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उनकी सरकारों ने सामाजिक किलेबंदी के बजाय आर्थिक साम्राज्य को बचाने पर ज्यादा जोर दिया, जिसके नतीजे में लाखों लोग अपने करीबियों से हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो गए।

लॉक-डाउन का फैसला लेने में ही नहीं, बल्कि इसके अमल के तरीके को लेकर भी भारत ने दुनिया को नया रास्ता दिखाया है। पहले दौर में 21 दिन और दूसरे में 19 यानी कुल 40 दिन का लॉक-डाउन महज संयोग नहीं, बल्कि इसका व्यावहारिक आधार है। दरअसल, जब किसी इलाके से 28 दिन तक संक्रमण का कोई नया मामला नहीं आता तब जाकर यह माना जाता है कि उस इलाके में कोरोना की चेन टूट गई है। लॉक-डाउन को 3 मई तक बढ़ाने की वजह यही सुनिश्चित करना है कि हर इलाके में ये चेन तोड़ दी जाए। साफ है कि कोरोना की महामारी इस लिहाज से भी नया पैमाना बन रही है कि सरकारों की सोच जंग का रंग किस तरह बदल सकती है। व्यापक समझ के साथ लॉकडाउन लागू करने से भारत में संक्रमितों का आंकड़ा धीमे-धीमे बढ़ा और 10 हजार का आंकड़ा आते-आते 75 दिन बीत गए। इस लंबे अंतराल में हमें अपनी रणनीति और संसाधनों के बेहतर जमावट पर काम करने की उपयोगी मोहलत मिल गई। इस मामले में केवल चीन कागजी आंकड़ों में हमें टक्कर दे पाया है।

लॉक-डाउन से मुंह चुराने वाले अमेरिका, इटली और स्पेन जैसे देशों का हाल यह रहा कि वहां देखते-ही-देखते संक्रमितों का आंकड़ा सैकड़ों से हजार और फिर लाख के पार पहुंच गया। जब लाशों के अंबार लगने शुरू हो गए तो वहां की सरकारों की ऊर्जा का बड़ा हिस्सा हालात संभालने के बजाय लाशों को ठिकाने लगाने में खर्च होता रहा। अब इन देशों में हर्ड इम्युनिटी ही आखिरी उम्मीद बची है, जिसके बारे में यह अनुमान है कि जब 60 फीसद आबादी संक्रमित हो जाती है तो वो उन लोगों के लिए प्रतिरक्षा तंत्र बनाती है जो संक्रमण के लिए इम्यून नहीं हैं। यह हमारी सरकार की बेहतर प्लानिंग का ही असर है कि भारत में अब तक कोरोना का सामुदायिक प्रसार नहीं हो पाया है। नये मामले सामने आने के बाद भी देश में अफरा-तफरी का माहौल नहीं, बल्कि उससे निपटने में आत्मविश्वास से भरी रणनीति दिखाई देती है। संक्रमण के अलग-अलग स्तरों के आधार पर देश को अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया गया है, जहां जमीनी अमला स्थानीय जरूरतों के हिसाब से अलग-अलग एक्शन प्लान पर काम कर रहा है। देश को ‘हॉट स्पॉट’ और ‘नॉन हॉट स्पॉट जोन’ में बांटने से सरकार ज्यादा सटीक तरीके से जरूरतमंदों तक पहुंच रही है और संसाधनों की फिजूलखर्ची भी नहीं हो रही है। कोरोना से लड़ने में सरकार के चौतरफा प्रयासों के साथ ही भारत को प्राकृतिक, आनुवांशिक और ऐतिहासिक बढ़त भी हासिल है। देश में गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है, कई इलाकों में तो पारा 40 डिग्री को पार कर गया है और आने वाले दिनों में इसके 48 डिग्री तक पहुंचने का अनुमान है। बेशक, फिलहाल कोई एक्सपर्ट अभी दावा नहीं कर रहा है, लेकिन इस बात से इनकार भी नहीं कर रहा है कि गर्म मौसम का असर कोरोना के विस्तार पर ब्रेक लगा सकता है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी का भी मानना है कि भारतीयों को यह अनुवांशिक लाभ है कि वो अपने जीन, शरीर में प्राकृतिक हत्यारी कोशिकाओं को ताकतवर बनाकर उन्हें वायरल संक्रमण के खिलाफ ज्यादा प्रतिरोधक बनाते हैं। ऐसा ही तंत्र ‘इबोला’ और ‘सार्स’ जैसे वायरस से चमगादड़ को बचाता है।

कालांतर में भारतीयों ने ‘स्पैनिश फ्लू’ जैसे उन रोगाणुओं का लगातार सामना किया जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं और हमलावर रोगाणुओं को नष्ट करते हैं। आईसीएमआर का एक अध्ययन भी संकेत देता है कि भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों में टीबी से मुकाबले के लिए बचपन में बीसीजी का जो टीका दिया जाता रहा है वो एक तरह की क्रॉस इम्युनिटी विकसित करता है जो कोरोना के असर को कम कर सकता है। अमेरिका और इटली जैसे देशों को टीबी का ज्यादा अनुभव नहीं है लिहाजा वहां कोरोना के मामले भी ज्यादा हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से भी भारत ने अतीत में कुल 11 विदेशी आक्रांताओं के हमले झेले हैं। बेशक इन हमलों का शरीर के अंदर प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने से कोई सीधा संबंध ना हो, लेकिन इसने हम भारतीयों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी बुरी-से-बुरी स्थिति का भी डटकर सामना करना तो सिखाया ही है। परंपरा से मिले सबक भी आज कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई की एक पहचान बने हुए हैं। बेशक कोरोना के खिलाफ इस पहचान का इम्तिहान बेहद लंबा होने जा रहा है, लेकिन इतना भी तय है कि सरकार का संकल्प और जनता का संयम यूं ही बरकरार रहा तो इस इम्तिहान में भी जीत हमारे नाम ही होगी।


उपेन्द्र राय
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ

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